RAW का अफ़सर बन गया CIA का एजेंट, सीक्रेट दस्तावेज कर दिए थे लीक
1 मई से 4 मई तक छुट्टियां थी इसीलिए ये समय रविंदर के भागने के लिए सही समय था. 30 अप्रैल 2004 की रात रबिंदर सिंह अपनी पत्नी के साथ एक पारिवारिक मित्र के घर जाने के लिए निकलता है. रॉ की निगरानी टीम भी उसकी कार का पीछा करने लगी. रॉ की निगरानी टीम ने देखा कि वह बाजार के पास अपनी कार पार्क कर रहा था. रॉ टीम ने भी थोड़ी दूरी पर कार पार्क की. कार में कोई हलचल नहीं दिखी और वापस से कार चलने लगी. रॉ टीम को कुछ शक हुआ लेकिन उन्होंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
अमर भूषण थोड़ी हैरान थे कि एक युवा अधिकारी क्यों उनसे मिलने के लिए आतुर है. उनका अनुभव कह रहा था कि जरूर गंभीर बात है. एस चंद्रशेखर ने अपना परिचय बताते हुए बात शुरू की और अधिकारी भूषण से कहा कि ” सर, बहुत बड़ी गड़बड़ हो रही है. रॉ के ज्वाइंट सेकेट्री रविंदर सिंह मुझसे यूओ नोट शेयर करने को कहते है और कुछ यूओ की तो फोटो कॉपी तक उन्होंने की है”
चंद्रशेखर की बात सुनकर अमर भूषण चौक गए क्योंकि जिस यूओ की बात चंद्रशेखर कर रहे थे वो खुफिया नोट थे जिसे बहुत गुप्त रखा जाता है. 1990 बैच के युवा एलाइड सर्विसेज अधिकारी एस चंद्रशेखर, की खबर से भूषण हिल गए थे. उन्होंने उसी दिन रविंदर सिंह जोकि रॉ में सचिव थे की जांच के लिए एक खुफिया टीम गठित कर दी.
रॉ की इस काउंटर-इंटेलिजेंस टीम ने भूषण के घर से ही रविंदर सिंह की हरकतों पर नज़र रखना शुरू कर दिया. रविंदर के घर के पास ही एक फल बेचने वाले अधेड़ शक्स को रॉ का एजेंट बना लिया गया. उसके ड्राइवर को भी अपनी टीम में शामिल कर लिया. रविंदर के जिम आने-जाने से लेकर दफ़्तर, घर, कार और टेलीफोन तक को टैप कर लिया गया. उसके दफ़्तर से गुज़रने वाले एयर-कंडीशनिंग डक्ट में एक निगरानी कैमरा लगाया गया ताकि उसके द्वारा फोटोकॉपी किए गए दस्तावेज़ों पर नज़र रखी जा सके.
एस चंद्रशेखर जानबूझकर रविंदर सिंह को जानकारी उपलब्ध कराने में मदद करने लगे ताकि उसकी भूमिका पकड़ी जाए. चंद्रशेखर ने सिंह को इस्लामाबाद में अमेरिकी मिशन द्वारा खोजे गुप्त दस्तावेज के असली लेकिन पुराने ट्रैफ़िक दिए जिसे रॉ के इंटेलिजेंस कर्मियों ने इंटरसेप्ट किया था. अमर भूषण की आत्मकथा के अनुसार उन्होंने रॉ चीफ सहाय से आईबी टीम को इस काउंटर मिशन में शामिल करने के लिए कहा लेकिन सीडी सहाय ने साफ मना कर दिया था.
एक रिपोर्ट के मुताबिक उस समय रॉ चीफ सी डी रॉ सहाय, रॉ के सेकंड ऑफिसर ज्योति सिन्हा और टॉप तीसरे अधिकारी अमर भूषण, के बीच व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता थी. तीनों अधिकारी भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के बिहार कैडर के 1969 बैच के अधिकारी थे. उनके बीच घनिष्ठ व्यक्तिगत संबंध के बावजूद उनके बीच करियर को लेकर होड़ रहती थी.
काउंटर टीम ने अपनी जांच शुरू कर दी. उन्होंने जांच के दौरान पाया कि 90 के दशक में हॉलैंड के भारतीय दूतावास में काउंसलर के तौर पर काम करने के दौरान सीआईए ने रबिंदर सिंह को भर्ती किया था. रॉ के जासूस अब रविंदर सिंह की हर बातचीत को सुन सकते थे. रविंदर गुप्त रिपोर्टों को घर लाकर अमरीकी उच्च कोटि के कैमरे से तस्वीरें एक दूसरी हार्ड डिस्क में स्टोर करता था और फिर उसे सिक्योर सर्वर के ज़रिए अपने हैंडलर्स को भेज देता था. काम होने के बाद वो बाद में हार्ड डिस्क से फ़ाइलें मिटा देता था. उसने इस तरह करीब बीस हज़ार दस्तावेज़ों को बाहर भेज दिया था.
जांच में ये भी पाया गया कि रबिंदर साल में कम से कम दो बार नेपाल जाता था जहां वो काठमाँडू में सीआईए के स्टेशन चीफ़ से मिलता था. रविंदर बिना डरे अपने ऑफिस से ही कमरा बंद कर गुप्त दस्तावेज़ों की फ़ोटोकॉपी करने लगा. एक दिन रविंदर सिंह ने रॉ के एजेंटों की लिस्ट अपने हैंडलर को भेज दी. जिसके बाद यह तय किया गया कि अब भंडाफोड़ करने का समय आ गया है.
जब दिल्ली ने गिरफ़्तारी रोक दी
2004 अप्रैल के तीसरे हफ्ते की एक शाम अचानक से रॉ के दफ़्तर के मेन गेट पर घर जाने वालों की तलाशी होने लगी. हर कर्मचारी के ब्रीफ़केस को चेक किया जा रहा था. रविंदर इस तलाशी से हैरान था क्योंकि रॉ के 35 वर्ष के इतिहास में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. उस समय तो उसके पास से कुछ नहीं निकला लेकिन वो सीधे घर जाकर सावधान हो गया. वो समझ गया था कि उस पर नज़र रखी जा रही है. रविंदर सिंह ने तुरंत दिल्ली में सीआईए स्टेशन चीफ तक बात पहुंचाई कि वह खतरे में पड़ने वाला है.
देखते ही देखते हो गया छूमन्तर
1 मई से 4 मई तक छुट्टियां थी इसीलिए ये समय रविंदर के भागने के लिए सही समय था. 30 अप्रैल 2004 की रात रबिंदर सिंह अपनी पत्नी के साथ एक पारिवारिक मित्र के घर जाने के लिए निकलता है. रॉ की निगरानी टीम भी उसकी कार का पीछा करने लगी. रॉ की निगरानी टीम ने देखा कि वह बाजार के पास अपनी कार पार्क कर रहा था. रॉ टीम ने भी थोड़ी दूरी पर कार पार्क की. कार में कोई हलचल नहीं दिखी और वापस से कार चलने लगी. रॉ टीम को कुछ शक हुआ लेकिन उन्होंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
वहीं कार वापस मुड़कर डिफेंस कॉलोनी के बंगला नंबर C/480 की तरफ बढ़ने लगती है जहां रविंदर का घर था. रॉ ऑफिसर को लगा कि शायद रविंदर या उसकी पत्नी कुछ भूल गई है. उन्होंने इस बात को हल्के में लिया. रॉ की टीम बाहर आने का इंतजार करने लगी. करीब 1 घंटे बीत जाने के बाद रॉ ऑफिसर सामान्य बात मानकर कुछ नहीं किए.
2-3 दिन तक घर में कुछ हलचल नहीं होने के कारण रॉ ऑफिसर को आसामान्य लगा. 4 मई 2004 की सुबह के समय रॉ के जासूस ज़रूरी डाक देने के बहाने घर में गए तो अंदर नौकर ने बताया कि साहब और मेमसाहब एक शादी में शामिल होने पंजाब गए हैं.” रॉ के ऑफिसर खतरा भाप चुके थे. उन्होंने तुरंत इसकी खबर अमर भूषण को दी. ऑफिसर ये जान चुके थे कि वो कार यूंही नहीं रुकी थी.
और ऐसे भाग निकला अमेरिका
ऐसे हुआ CIA एजेंट का अंत
काठमांडू के ज़रिए वॉशिंगटन पहुंचने के कुछ महीनों के अंदर ही सीआईए ने रबिंदर से अपना नाता तोड़ लिया. वो खाने पीने का मोहताज हो गया क्योंकि सीआईए ने मदद करनी बंद कर दी थी. रविंदर ने नौकरी पाने की भी कोशिश की लेकिन उसमें उसे सफलता नहीं मिली. रबिंदर अमेरिका के न्यूय़ॉर्क, वर्जीनिया और मैरीलैंड में समय गुजारने लगा. वर्ष 2016 के अंत में रबिंदर की मैरीलैंड में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. इस बात की जानकारी वाशिंगटन ने एक कोडेड संदेश के जरिए भेजी थी.