जब गृहमंत्री की बेटी का ही आतंकियों ने किया अपहरण, पूरी दिल्ली में मचा ऐसा कोहराम
8 दिसंबर 1989 का दिन था। दोपहर के करीब 3 बज कर 25 मिनट पर 23 साल की रुबिया श्रीनगर के लल देद मेमोरियल अस्पताल से बाहर निकलती है। खतरे से अनजान देश के गृह मंत्री की बेटी रुबिया रोज की तरह बस नंबर JFK 677 में चढ़ी। करीब 10 मिनट बाद बस अचानक रुकती है और उसमे 3 अनजान लोग सवार हो जाते हैं। बस के आगे वाली सीट मे 2 लोग और 1 पीछे बैठ जाता है।
भारत देश जितना बड़ा और प्यारा है उतना ही इसका इतिहास अनोखा रहा है। कहा जाता है कि किसी भी देश का गृहमंत्री, प्रधानमंत्री के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण और ताकतवर व्यक्ति होता है। लेकिन हमारे देश के इतिहास में एक ऐसी घटना भी दर्ज है जब आतंकियों ने देश के गृहमंत्री की बेटी का ही अपहरण कर लिया था।
वो शाम जब अगवा हुई गृहमंत्री की बेटी-
वो घाटी में बीत रहा सर्दियों का कोई आम दिन ही था, लेकिन सूरज छिपते-छिपते एक सनसनीखेज़ वारदात का साक्षी बनने वाला था।
ये वो दौर था जब घाटी के युवा किताबों को पढ़ना छोड़कर बम और बंदूक चलाने की ट्रैनिंग ले रहे थे । घाटी नारा ए तकबीर और गो बैक इंडिया जैसे नारों से गूंज रही थी। दिल्ली में विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे और गृहमंत्री का जिम्मा संभालने जा रहे थे, जम्मू कश्मीर के बड़े नेता मुफ़्ती मोहम्मद सईद।
जिस दिन गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद पद की शपथ ले रहे थे उसके ठीक 6 दिन बाद कुछ ऐसा होने वाला था जिसको सोचकर भी आज कोई विश्वास नहीं करता है ।
रोजाना देरी से आने वाली बस को उस दिन क्या हुआ-
8 दिसंबर 1989 का दिन था। श्रीनगर के लल देद मेमोरियल अस्पताल में रोज की तरह चहल पहल थी। दोपहर के करीब 3 बजकर 25 मिनट पर 23 साल की रुबिया अस्पताल से बाहर निकलती है। खतरे से अनजान देश के गृह मंत्री की बेटी रुबिया रोज की तरह बस नंबर JFK 677 में चढ़ती है। वैसे तो रोजाना उसकी बस लेट हो जाती थी लेकिन उस दिन बस उसका पहले से इंतजार कर रही थीं। रुबिया बिना सोचे समझे बस में अपने घर नौगाम जाने के लिए चढ़ जाती है।
नीले रंग की मारुति कार रुकी और अगवा हुई रुबिया-
करीब 10 मिनट बाद बस अचानक रुकती है और उसमे 3 अनजान लोग सवार हो जाते हैं। बस के आगे वाली सीट में 2 लोग और 1 पीछे बैठ जाता है। बस फिर से अपने रफ्तार मे चल देती है। करीब बीस मिनट बाद बस जैसे ही चानपूरा चौक के पास पहुंची बस के ड्राइवर ने एकदम से गाड़ी रोक दी। बस के अंदर बैठे तीन अजनबियों ने बंदूकों की नोंक पर रुबिया को बस से उतरने को कहा। रुबिया बिना डरे बस से उतर गई। बस में बैठे बाकी लोग ये सब देखकर हैरान थे कि जिसके सर पर बंदूक है वो इतना शांत कैसे हो सकता है। तीनों युवक रुबिया को बस के सामने खड़ी नीले रंग की मारुति कार में बैठाते हैं और देखते ही देखते आखों के सामने से ओझल हो जाते हैं।
राजधानी दिल्ली मे मची हलचल-
आतंकी, रुबिया को श्रीनगर से कई किलोमीटर दूर नाटीपोरा ले जाते हैं। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी केबी जिंदल के अनुसार जिस कार से रुबिया को नाटीपोरा ले जाया गया था उसमें अलगावादी संगठन जेकेएलएफ का मुखिया यासीन मलिक भी बैठा हुआ था।
आतंकियों के बदले गृहमंत्री की बेटी की रिहाई-
करीब दो घंटे बाद JKLF के जावेद मीर ने एक लोकल अखबार को फोन करके जानकारी दी कि JKLF ने भारत के गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया है। साथ ही यह भी कहा कि पांच आतंकियों की रिहाई के बदले में ही गृहमंत्री की बेटी को लौटाया जाएगा।
आनन फानन मे दिल्ली को मिली सूचना-
नए गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद नॉर्थ ब्लाॅक यानी गृह मंत्रालय में पहली बार अधिकारियों से रूबरू हो रहे थे। तभी उनके निज सचिव एक कागज लाकर उनको देते हैं। गृह मंत्री कागज देखकर सीधे अधिकारियों से कहते हैं “मीटिंग ओवर“।
दिल्ली से श्रीनगर तक, पुलिस से इंटेलिजेंस तक बैठकों का दौर शुरू-
केबी जिंदल के मुताबिक, जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला उस समय लंदन में थे। उन्होंने वहीं से दिल्ली में मौजूद तत्कालीन मुख्य सचिव मूसा रजा और राज्य मंत्रिमंडल के साथ बैठक की। फ़ारुक़ अब्दुल्ला तुरंत इंडिया आने के लिए निकलते हैं। उधर केंद्र सरकार ने रुबैया की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए एक टीम का गठन किया, जिसमें मूसा रजा के साथ नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के महानिदेशक वेद मारवाह और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के चीफ एएस दुलत को भी शामिल किया गया। इस पूरे मामले को देखने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने वाणिज्य मंत्री अरूण नेहरू को सौंप रखी थी।
गृहमंत्री की बेटी की लाश फेंक दी जाएगी-
दो दिन बाद दस दिसंबर को जेकेएलएफ ने अपनी मांग दोहराते हुए दिल्ली को साफ कहा कि कल तक हमारे साथियों को छोड़ दें वरना रुबिया की लाश श्रीनगर में फेंक दी जाएगी।
राज्य सरकार के मुखिया फारुख अब्दुल्ला तब तक भारत लौट चुके थे। फ़ारुक़ अब्दुल्ला ने दिल्ली को बता दिया था कि जेकेएलएफ की मांग के सामने वो झुकने को तैयार नहीं है लेकिन केंद्र सरकार नरम पड़ती दिख रही थी। दिल्ली गुहार लगा रही थी लेकिन अब्दुल्ला मानने को तैयार नहीं थे। उन्होंने तो साफ कह दिया था कि अगर मेरी अपनी बेटी को भी किडनैप किया जाता तो भी मैं किसी आतंकी को रिहा नहीं करता।
वक्त तेज़ी से बीत रहा था। जो डेडलाइन दी गई थी वो भी गुज़र गई। केंद्र और राज्य के बीच एक खींचतान साफ देखी जा रही थी।
आधी रात को आया पीएम वीपी सिंह का कॉल-
वीपी सिंह ने फ़ारुक़ अब्दुल्ला को आधी रात कॉल किया और कहा कि डॉक्टर साब हम टीम भेज रहे हैं। कृपया उन्हें (रूबिया) छुड़ाने में मदद करें। 13 दिसंबर 1989 की सुबह सुबह 5 बजे विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल और नागरिक उड्डयन मंत्री आरिफ मोहम्मद खान फ़ारुक़ अब्दुल के घर के बाहर थे। उनके साथ तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नाराणयन भी थे। कुछ देर बाद उन सबकी मुलाकात मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला से हुई।
फारूक अब्दुल्ला से छिनने वाली थी गद्दी-
तीनों को हमाम में बिठाया गया जो सबसे गर्म कमरा था। दिसंबर का महीना था और तीनों लोग कांप रहे थे। फारूक अब्दुल्ला ने उन्हे कहवा दिया और अपने चीफ सेक्रेटरी और मिस्टर दुलत (श्रीनगर में तत्कालीन आईबी चीफ) से उन्हें ब्रीफ करने को कहा। गुजराल ने बीच मे टोकते हुए कहा कि डॉक्टर साब हमारे पास समय नहीं है। दिल्ली ने निर्णय लिया है कि अगर आप आतंकियों को नहीं छोड़ते हैं तो हम आपको हटाने जा रहे हैं।
असहमत होते हुए भी फारुख अब्दुल ने पांचों कैदियों को छोड़ने का फरमान सुना दिया। फारुख बताते हैं कि आतंकियों की रिहाई को खुद उन्होंने भारत के ताबूत में आखिरी कील तक कहा था।
दिल्ली पहुंची गृहमंत्री की बेटी रुबिया-
13 दिसंबर की दोपहर तक सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौता हो गया। समझौते के तहत उस दिन शाम 5 बजे 5 आतंकियों को रिहा किया गया। उससे कुछ ही घंटे बाद लगभग साढ़े सात बजे रूबिया को सोनवर स्थित जस्टिस मोतीलाल भट्ट के घर सुरक्षित पहुंचा दिया गया। फिर रूबिया को उसी रात विशेष विमान से दिल्ली लाया गया।
एयरपोर्ट पर मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी दूसरी बेटी महबूबा मुफ्ती मौजूद थी। उन्होंने रुबिया को गले से लगा लिया। इस दौरान मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा था कि एक पिता के रूप में मैं खुश हूं लेकिन एक नेता के रूप में यहीं कहना चाहूंगा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था।
‘जो करे खुदा का खौफ, वो उठा ले क्लाश्निकोव’
एक तरफ मुफ्ती परिवार खुश था दूसरी तरफ पांचों आतंकियों की रिहाई का जश्न श्रीनगर में मनाया जा रहा था। श्रीनगर में काफी गहमा-गहमी थी। लोग उन्माद में सड़कों पर उतर आए थे, पूरी घाटी में अलगावाद के नारे गूँजने लगे। ‘हम क्या चाहते! आजादी’ और ‘जो करे खुदा का खौफ, वो उठा ले क्लाश्निकोव’ जैसे नारे उस दिन श्रीनगर की सड़कों पर सरेआम लगाए जा रहे थे।
दस साल तक घाटी में रहने वाली आशा खोसा ने बताया कि ‘अपहरण कांड को लेकर घाटी में रुबिया के लिए कोई हमदर्दी नहीं थी बल्कि लोग अपहरणकर्ताओं के साथ दिखे। एक अपहरण ने लोगों का नज़रिया बदलकर रख दिया। आशा आगे कहती हैं कि, ‘उग्रवादियों के छूटने के बाद चारों तरफ जश्न था। इतने लोग मैंने कभी एक साथ गलियों में कभी नहीं देखे थे। वो गा रहे थे, नाच रहे थे और भारत विरोधी नारे लगा रहे थे।’
खुद गृहमंत्री ने रचा था बेटी के अपहरण का नाटक?
घाटी के अलगाववादी नेता हिलाल वार ने एक किताब लिखी है– ग्रेट डिस्कलोज़र– सीक्रेट अनमास्क्ड। उन्होंने आरोप लगाया कि रुबिया का अपहरण सिर्फ एक राजनीतिक नाटक था।
उन्होंने अपनी बुक मे लिखा कि गृहमंत्री के एकदम खास गुरुस्वामी की उनसे मुलाकात हुई। गुरु स्वामी ने उन्हे बताया था कि, ‘अपहरण कांड के दौरान मुफ्ती एकदम चुप थे, लग ही नहीं रहा था कि कुछ हुआ भी है ।
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सईद नहीं चाहते थे कि बेटी रूबिया जल्द रिहा हो!
जुलाई 2012 में नेशनल सिक्योरिटी ग्रुप के पूर्व मेजर जनरल ओपी कौशिक ने भी बताया था कि खुद रुबिया के पिता और गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी जल्द रिहा हो। कौशिक ने कहा था कि अपहरण की सूचना मिलने के महज़ पांच मिनट के भीतर एनएसजी ने मालूम कर लिया था कि रुबिया को कहां छिपाया गया है। कौशिक ने सईद को बताया था कि रुबिया को कुछ ही देर में सुरक्षित रिहा करा लिया जाएगा मगर गृहमंत्री ने उनकी बात अनसुनी कर दी। इसके उलट उन्होंने कौशिक से कहा कि वो तुरंत मीटिंग से बाहर निकलें और एनएसजी को पीछे हटाएं।
बहरहाल, सच्चाई जो भी हो (The Great Disclosures – Secrets Unmasked) लेकिन किसी देश के गृहमंत्री की बेटी का अपहरण और सरकार का अपहरणकर्ताओं की बात मान लेना बहुत डरावनी बात थी।