Nirmala Book Review: लेखक मुंशी प्रेमचंद की कलम से निर्मला उपन्यास
Nirmala Munshi Premchand: भारतीय लेखकों में मुंशी प्रेमचंद्र का नाम अमर है। प्रेमचंद की कलम से लिखे गए कई उपन्यास आज भी पाठकों के बीच उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने की उस जमाने में हुआ करते थे।
Nirmala Munshi Premchand: भारतीय लेखकों में मुंशी प्रेमचंद्र का नाम अमर है। प्रेमचंद की कलम से लिखे गए कई उपन्यास आज भी पाठकों के बीच उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने की उस जमाने में हुआ करते थे। प्रेमचंद ने निर्मला उपन्यास लिख महिलाओं की दुर्दशा और त्याग का एक चित्रण समाज के सामने रखने की भरपूर कोशिश की है। एक-एक शब्दों में आप जमीन से जुड़ी हुई महिलाओं की उस सच्चाई की सुगंध ले सकते हैं। जोकि आए दिन एक निम्न मध्यमवर्गी घर में बिन मर्जी ब्याही गई एक महिला की होती है। निर्मला उपन्यास की पटकथा क्या है? मुख्य किरदार कौन-कौन से हैं? आखिरकार क्यों और किस तरह के पाठकों को यह उपन्यास पढ़ना चाहिए? इन सभी पर निम्नलिखित बिंदूओं के साथ समीक्षा करेंगे।
उपन्यास का नाम: निर्मला ( Nirmala )
लेखक का नाम: प्रेमचंद ( Pramchand )
प्रकाशन: वायु एजुकेशन इंडिया ( Vayu Education India )
कुल पृष्ठ: 184
उपन्यास की कीमत: अधिकतम 125 रुपये
प्रकार: काल्पनिक ( Fiction )
मुख्य किरदारों के नाम: निर्मला, मुंशी तोताराम, मंसाराम, रुक्मिणी, जियाराम, डॉक्टर भुवन मोहन सिन्हा, सुधा, सियाराम, उदयभानुलाल, भालचंद्र सिन्हा, कृष्णा, चंदर, कल्याणी, रंगीलीबाई, पंडित मोटेराम आदि।
निर्मला उपन्यास की पटकथा –
लेखक मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास निर्मला में मुख्य किरदार का नाम निर्मला ही है। यह उपन्यास निर्मला की शादी की तैयारियों से शुरु होता है और निर्मला की मौत के अंतिम संदेश के साथ खत्म हो जाता है। निर्मला अपने माता-पिता की पहली बेटी है। उसकी एक छोटी बहन और भाई भी है। निर्मला की शादी उसके पिता एक संपन्न घर में करवाना चाहते हैं। जिसका रिश्ता भी अब तय हो गया है। निर्मला के पिता उदयभानुलाल, पेशे से एक वकिल हैं। माता कल्याणी के साथ निर्मला के विवाह की सारी तैयारियां कर रहे हैं, इस बीच आपसी नोक-झोक के कारण उदयभानुलाल घर छोड़ कुछ दिनों के लिए कहीं दुर जाने का विचार करते हैं।
बिना किसी को बताए उदयभानुलाल अपना घर छोड़ रात के अंधेरे में निकल पड़ते हैं। लेकिन उन्हे नहीं पता था कि उस रात उनकी मौत उन्हे अपने पास बुला रही थी। सुबह समाचार के साथ उदयभानुलाल का मृत शरीर निर्मला के विवाह के आगन में पहुंचता है। तो मानों दुखों के सारे पहाड़ टूट पड़े हों। क्रिया-क्रम के बाद विधवा हुई निर्मला की मां, पंडित मोटाराम के हाथों निर्मला के होने वाले ससुर भालचंद्र सिन्हा को एक खत भेजती हैं। साथ ही मोटाराम से आग्रह करती हैं कि कैसे भी करके भालचंद्र को यह शादी न तोड़ने के लिए मना कर ही आएं।
भालचंद्र सिन्हा एक सरकारी आयकर विभाग का अधिकारी है। भालचंद्र की नशों में रिश्वत का खून है। पहले तो भालचंद्र पंडित मोटाराम की मेहमानी का दिखावा करता है और बाद में बड़े ही आसानी के साथ ‘जिसका पिता नहीं रहा वह यहां आकर क्या करेगी’ कह कर रिश्ता जोड़ने से मना कर देता है। हालांकि यहां निर्मला की मां का खत पढ़ने के बाद दुल्हे की मां रंगीलीबाई जरुर ही कहती हैं कि वह यह रिश्ता करना चाहती हैं। लेकिन इस बीच पहुंचा दुल्हा, भारी-भरकम दहेज का नाम लेकर शादी करने से मना कर देता है।
निर्मला की मां के सामने अब कोई रास्ता न था। वह चाहती थी कि निर्मला की शादी उसी तारीख पर हो जिसपर उसके पिता तय करके गए हैं। इससे बयाना दी हुई राशि भी बच जाएगी और निर्मला की शादी भी हो जाएगी। क्योंकि अब उसके घर में आमदनी का कोई रास्ता न था। इसी के साथ पिता की मौत के बाद कोई अपना पैसे देने को तैयार भी न था। ऐसे में निर्मला की मां, पंडित मोटाराम से नए रिश्ते लाने के लिए कहती है। मोटाराम कुछ दिनों के बाद कुल पांच रिश्तों के साथ लौटते हैं। जिसमें से उसकी मां उस दुल्हे पर मोहर लगाती है जिसकी पहली पत्नी की मौत हो गई है, तीन लड़के हैं और घर में बैठी एक विधवा बहन भी है। दुल्हे की उम्र 35 साल से ज्यादा है। अब क्योंकि दुल्हा एक मुंशी है, अच्छा कमा-खा लेता है और दहेज के नाम पर एक रुपया भी नहीं मांग रहा, बस इन्ही कारणों से निर्मला की सहमती जाने बगैर उसे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ ब्याह दिया जाता है।
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अब निर्मला जितनी भी थी वह नौजवान थी और मुंशी तोताराम में वह बात न थीं जोकि उसे रिझा सकें। एक दिन मुंशी तोताराम ने अपने बड़े बेटे मंसाराम को निर्मला के कमरे से बाहर निकलता देख लिया। बस तोताराम को शक हो गया कि उसकी नई पत्नी और उसी के बड़े बेटे के बीच कुछ खीचड़ी पक रही है। तोतराम सोचता है कि इस उम्र में शादी कर मैने क्या-क्या ख्वाब देखे थे, पर क्या यह सब मेरे बेटे के हाथों ही कुरबान हो जाएंगे और ऐसे कई ख्याल आने लगे। जिसकी वजह से वह अपने बटे मंसाराम को अब घर से बाहर भेजने की फिराक में लग गया। इस शक के बारे में जब निर्मला को पता चला तो वह गंगा जैसी पवित्र नारी ने मंसाराम से पढ़ना और बात ही करना छोड़ दिया। इस बीच तोताराम की बहन रुक्मिणी आए दिन निर्मला को ताने मारती रहती और किसी न किसी बात को लेकर लड़ने को तैयार रहती। ऐसा इसलिए क्योंकि निर्मला के आने के बाद से तोताराम ने विधवा बहन का मालकाना हुक्का-पानी निर्मला के हाथों सौंप दिया था।
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कुछ दिनों के बाद जब मंसाराम को अपने पिता की निगाहों पर शक हुआ और उसे भी अंदर अंदर पता चला कि उसका पिता उसकी नई अम्मा और उसके बारे में क्या सोच रहे हैं तो वह खुद घर छोड़ दुर चला गया। जहां उसकी तबियत ऐसी खराब हुई कि तोताराम उसकी जान बचाने के लिए भी उसे घर नहीं लाए और वहीं के नजदीकी अस्पताल में उसकी मौत हो गई। मौत से पहले जब उसे खून देने के लिए उसकी नई अम्मा निर्मला अस्पताल आती हैं इस बात को लेकर भी तोताराम खुश नहीं दिखते हैं। लेकिन अपनी अम्मा को देख मंसाराम जिसके शरीर में जान तक नहीं होती है वह खड़ा होकर निर्मला के पैरों पर गिर जाता है और अम्मा अम्मा कहकर रोने लगता है। ऐसा इसलिए ताकि उसके पिता को यह यकीन हो जाए कि जैसा उसके पिता सोच रहे हैं वैसा कभी कुछ नहीं था।
लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। मंसाराम की मौत हो जाती है। जिसके बाद मुंशी तोताराम को इतना दुख होता है कि वह अपनी वकातल छोड़ घर बैठ जाते हैं। जिससे उनके घर की आर्थिक स्थिति खराब होने लगती है। इसी दौरान डॉक्टर सिन्हा का तोताराम और निर्मला के जीवन में प्रवेश होता है। जिसके कुछ दिनों बाद निर्मला एक बच्ची की मां बनती है। इसी के कुछ दिनों बाद डॉ सिन्हा की पत्नी सुधा और निर्मला की भी मुलाकात होती है। जहां से कई राज खुलते हैं। एक राज डॉ सिन्हा के जीवन और निर्मला से भी जुड़ा हुआ खुलता है जिसके बाद निर्मला की छोटी बहन कृष्णा और डॉ सिन्हा के छोटे भाई का विवाह होता है और वह भी कम खर्च और बिना दहेज के। इसके बाद ही निर्मला के जीवन में एक और दुख की धड़ी आती है। जब तोताराम का मझौला बेटा जियाराम जहर खा कर आत्महत्या कर लेता है। उसके आत्महत्या के पिछे का कारण निर्मला से ही जुड़ा हुआ होता है।
घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण मुंशी तोताराम का घर निलाम हो जाता है। जिसके बाद तोताराम निर्मला सहित बहन रुक्मिणी के साथ तंग गलियों वाले एक मकान में रहने लगते हैं। इसी बीच घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए निर्मला भी घर खर्च और अपने तमाम खर्चे को आग की भट्टी में डाल देती है। उसे अपनी बच्ची की चिंता सताने लगती है। इस दौरान निर्मला का सुधा के घर आना-जाना ज्यादा होने लगता है। इस दौरान एक दिन सुधा की गैर-मौजूदगी में निर्मला और डॉ सिन्हा का एक कमरे में आमना-सामना हो जाता है। जिसके बाद कुछ ऐसा होता है कि डॉ सिन्हा जहर खा कर खुद की जान दे देते हैं। तोताराम अब अपने सबसे छोटे बेटे सियाराम के साथ रह जाते हैं। लेकिन सियाराम भी एक दिन किसी बात को लेकर तंग आकर साधुओं के साथ घर छोड़ भाग जाता है। जिसकी तलाश में बुजुर्ग तोताराम उसके पीछे-पीछे निकलते हैं।
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घर पर अब उनकी बहन रुक्मिणी और निर्मला अपनी बेटी के साथ रह जाते हैं। घर में दिनों-दिनों तक कोई खाना नहीं बनता। सिर्फ बच्ची के लिए जो बनता सो बनता। दो बेटों को खो देने के बाद से मुंशी तोताराम के वकालत छोड़ने के बाद से घर में पैसे तक न थे। इसी बीच निर्मला की तबीयत खराब हो जाती है। उसके शरीर में बुखार दौड़ने लगता है। उसकी यह हालत देख आज रुक्मिणी भी उससे मृदु शब्दों में बात करती है। लेकिन ऐसी हालत के साथ निर्मला अपनी बच्ची को छोड़ अपनी जीवन भर की समस्याओं की अलविदा कह जाती है।
खबर सुनते ही सभी मुहल्ले के लोग जमा हो जाते हैं। लाश बाहर निकाली जाती है। निर्मला के मृत शरीर को कौन आग लगाएगा? यह सवाल उठ खड़ा होता है। लोग इसी चिंता में थे कि सहसा एक बूढ़ा पथिक एक बचुका लटकाए आकर खड़ा हो गया। यह मुंशी तोताराम थे।
समीक्षा निर्मला उपन्यास –
निर्मला उपन्यास की भाषा काफी सरल है। आसान हिंदी की समझ मात्र से आप इस उपन्यास को पढ़ सकते हैं। इस उपन्यास को उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र बनारस में जन्माया गया है। उपन्यास महिलाओं के संघर्ष की कहानी बया करता है। निर्मला इस कहानी की मुख्यकिरदार है। इस उपन्यास में सभी किरदारों को बखूबी वर्णित किया गया है। निर्मला के जीवन को केंद्रित कर इस उपन्यास को लिखा गया है। निर्मला उपन्यास में ज्यादातर किरदारों को मौत हो जाती है। निर्मला का जीवन दुखों के गीत से भरा हुआ है। इतना दुख होने के बावजूद भी हिम्मत रखती है। और जीवन के जहर को पी जाती है। अपनी मां से कुछ न कहती है। तनिक शिकायत तक न करती है। महिलाओं की सहिष्णुता का एक उदाहरण है निर्मला उपन्यास।
हमारा मानना है कि आज कल के जमाने में ऐसी परिस्थिति प्रगट होने पर 21वीं सदी की निर्मला तलाक का रास्ता जरुर चुनती और ऐसे दुखमय जीवन से अच्छा वह अकेली जीवन यापन करती। इस उपन्यास को पढ़ने को बाद आप उस दर्द को महसूस कर पाएंगे जोकि एक महिला अपने जीवन के भीषण पलों में महसूस करती है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास को बखूबी लिखा है। जिसे पढ़कर आप काफी कुछ महसूस कर सकते हैं। अगर आप भी भारतीय महिलाओं की सहिष्णुता का असल परिचय जानना चाहते हैं तो इस उपन्यास को अपने जीवन में जरुर पढ़ें।