Book Review: चौरासी उपन्यास का यहां पढ़ें समीक्षा
कत्ले खून के निशान, जलते हुए पन्ने, दंगे की कालिख और इश्क के लाल रंग में लड़का और लड़की का प्रतिबिंब आपको चौरासी (Chaurasi Novel Review) के कवर पृष्ठ पर देखने को मिल जाएगा।
कत्ले खून के निशान, जलते हुए पन्ने, दंगे की कालिख और इश्क के लाल रंग में लड़का और लड़की का प्रतिबिंब आपको चौरासी (Chaurasi Novel Review) के कवर पृष्ठ पर देखने को मिल जाएगा। कवर पृष्ठ देखकर ही चौरासी उपन्यास को लेकर कई बातें आपके दिमाग में साफ हो जाएंगी। जैसेकि इसकी पटकथा और इर्द-गिर्द वाली घटना जिस समय में जाकर यह उपन्यास लिखा गया है। इस उपन्यास को लेखक सत्य व्यास (Satya Vyas) ने लिखा है और प्रकाशन हिन्दी युग्म ने किया है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और एक इश्क-
उपन्यास चौरासी (Chaurasi Novel Review) कुल मिलाकर आसान शब्दों में एक प्रेम कहानी है। जिसका जन्म लौह महिला इंदिरा गांधी के आत्मनिर्भर भारत में होता है। दंगों से पहले जन्मा इश्क कैसे दंगों के समय बरकरार रहते हुए अपने प्यार के साथ उसके परिवार की भी रक्षा करता है। इसी के इर्द-गिर्द इस उपन्यास को आसान शब्दों जोकि अंदर से किसी को भी झकझोर दें उनके मिश्रण से लिखा गया है।
एक घटना और तारीख ने भूला दिया भाईचारा-
हम सभी को पता है की 1984 में क्या हुआ था। 31 अक्टूबर की तारीख और उसके बाद देशभर के हालात। कत्लेआम, लूटपाट और धारा 144 लागू। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही सुरक्षाकर्मी ने की। सुरक्षाकर्मी सिख धर्म से थे। सिख धर्म के ज्यादातर लोग ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद से इंदिरा गांधी से काफी नाराज थे। यह नराजगी कुछ इस कदर थी कि प्रधानमंत्री मिल जाएं तो जान तक ले लें। यही हुआ 31 अक्टूबर 1984 को। जिसके बाद से देशभर में दंगे और कत्लेआम जमकर हुए।
दंगों में नहीं मरा बोकारो का इश्क-
झारखण्ड जोकि 1984 में बिहार का ही एक हिस्सा था। वहां के शहर बोकारो में चौरासी उपन्यास को जन्माया गया है। एक सिख परिवार और उनके घर उनकी बेटी मनु को पढ़ाने आने वाले हिंदू युवक ऋषि की प्रेम कहानी। उपन्यास के शुरुआत में आपको बिल्कुल भी नहीं लगेगा कि 1984 का दंगा होने वाला है। सब कुछ आसान और मुश्किल सा होता है जैसेकि एक पहले-पहल इश्क में होता है। दंगों से पहले शुरु हुआ यह इश्क दंगों के समय लाल रंग से और लाल हो जाता है।
चौरासी उपन्यास का सबसे न्यूनतम बिंदू-
ऋषि और मनु की तकरार और ट्रेन में बैठ जाना। परीक्षा देने तो दोनों साथ में आए थे। लेकिन जाते समय एक ऐसी टकरार हुई कि मनु तो ट्रेन में जाकर बैठ गई लेकिन ऋषि कहीं पीछे छुट गया। मनु को पूरा भरोसा था कि वह अकेली घर जा सकती है उसे ऋषि के सहारे की कोई जरुरत नहीं है। लेकिन जब ट्रेन ने स्टेशन छोड़ा उसके बाद से मनु को जरा भी ख्याल न रहा कि उसे घर जाने के लिए किस स्टेशन पर उतरना है। ट्रेन अपने अंतिम स्टेशन पहुंच गई और मनु वहीं बैठी की बैठी रही। जब उसे एहसास हुआ तो वह वहीं रोने लगी और खुद को कोशने लगी। ट्रेन में बैठे-बैठे रात के नौ बज गए। ट्रेन खाली थी कोई भी नहीं था उसमे डर के अलावा। ट्रेन स्टेशन पर एक जगह खड़ी थी। इसी बीच रोते-रोते थकी मनु भगवान का नाम लेते लेते सोने लगी। उसे ढुंढता हुआ जब ऋषि वहां पहुंचा है और मनु से मिलता है। उस समय मनु और उसके आंसू दोनों ही जब ऋषि के सीने से लगे। यह पूरा शब्दों के माध्यम से चित्र दर्शन जबरदस्त है।
प्रेमिका मनु के घर तक पहुंचे दंगे-
मनु और ऋषि का प्रेम अब अपने चरण पर था। प्रेम ऐसा था कि लाल रंग की स्याही कम पड़ रही थी। लेकिन इसी बीच इंदिरा गांधी की हत्या और बोकारों में सिख धर्म के लोगों पर जानलेवा हमला और उनके घरों में लूटपाट की घटना के साथ दंगों ने जन्म लिया। और अबकि बारी बोकारो में लाल स्याही की जगह लाल खून बहने लगी। ऋषि ने जैसे तैसे करके अपनी प्रेमिका को दंगों के बीच दंगाकारियों से बचा कर अलविदा कहा। वो रात भयानक थी। सड़क पर लोगों को जलाया जा रहा था। लेकिन ये प्रेमी फिर मिलते हैं कैसे और कहां यह जानने के लिए आपको भी यह उपन्यास जरुर पढ़ना चाहिए। यह समझना चाहिए कि प्रेम तभी कामयाब होता है जब वह सच्चा होता है।
चौरासी उपन्यास का हर एक शीर्षक कमाल है-
उपन्यास (Chaurasi Novel Review) में के हर एक भाग को बखूबी उसके शीर्षक बताते चलते हैं। शीर्षक की विशेषता यह है कि यह ज्यादातर स्थानिय भाषा में लिखी गई है। जिसमे से एक शीर्षक ‘लग बैठी पियु अंग सखी री’ इसे पढ़कर ही आपको यह आभास हो जाएगा कि इस भाग में कहीं ना कहीं प्रेमी और प्रेमिका का मिलन होने वाला है। इस तरह के सभी शीर्षक है जिन्हे पढ़कर आपको एक अलग तरह का आनंद मिलेगा।
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चौरासी उपन्यास से आग यह नहीं देखती-
सत्य व्यास दंगों के बीच लगी आग को लिखते हैं कि आग हरे-सूखे का भेद करती है। आग नम और खुश्क का भी भेद करती है। आग माध्यम और निर्वात का भेद करती है। मगर आग जिंदा और मुर्दे का भेद नहीं करती है। वह यह नहीं देखती की वह आदमी जिससे लिपटकर वह धूं-धूं होकर जल रही है उसकी सांस भी बाकी है। या शायद बाकी थी अब नहीं रही।
चौरासी उपन्यास की कुछ और खास बातें-
सत्य व्यास द्वारा लिखिल चौरासी को खरीदने के आपके पास कई माध्यम उपलब्ध हैं। इसमे ऑनलाइन वेबसाइट, आसपास मौजूद किताब की दुकान और किताबों का बाजार शामिल हैं। जहां जाकर आप अधिकतम 125 रुपये खर्च कर 165 पन्नों वाले इस उपन्यास को खरीद सकते हैं। बता दें कि इस उपन्यास का पहला संस्कर सितंबर 2018 में प्रकाशित हुआ था।