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उपहार के लिए भिड़ते मीडिया पत्रकार

उस समय को मैं आसानी से याद कर सकता हूं, जब कोई अपने नाम के पीछे पत्रकार लगाकर अपना परिचय पूरा करता था तब वहां मौजूद लोगों की आंखों में वो सम्मान का भाव जीवन्त दिखाई देता था। आम लोग अपनी कुर्सी खाली कर देते थे और विशेष लोग खड़े हो जाते थे।

उस समय को मैं आसानी से याद कर सकता हूं, जब कोई अपने नाम के पीछे पत्रकार लगाकर अपना परिचय पूरा करता था तब वहां मौजूद लोगों की आंखों में वो सम्मान का भाव जीवन्त दिखाई देता था। आम लोग अपनी कुर्सी खाली कर देते थे और विशेष लोग खड़े हो जाते थे। यह किसी डर से की हुई कोई क्रिया नहीं होती थी अपितु सम्मान होता था। पत्रकार महोदय भी वहां बैठकर वही चाय पीते थे जोकि सबके लिए आती थी। कभी-कभार नास्ता भी मिल जाता था। लेकिन यह वही होता था जोकि सब जन के लिए होता था। इसके अलावां अगर कभी बाजार-दुकान पर पत्रकार महोदय से इन आम लोगों की मुलाकात हो जाती थी, तो यही सब उनकी तरफ से भी होता था।

पत्रकार महोदय की जेब में मैंने हमेशा तीन कलम लाल, काला और नीला को रखा देखा। ज्यादातर वो नीले कलम से ही लिखते थे। जब भी गांव में कुछ घटना घटित होती वह गांव में सभी के बीच एक तय समय पर पहुंच जाते। तय समय इसलिए क्योंकि उनके आने की जानकारी गांव में पहले से ही सभी के पास पहुंच जाती थी। और सभी घटनास्थल पर पहुंच जाते थे। वहां पहुंच पत्रकार बाबू कुछ सवाल करते और सभी उसका अपने अपने भोग के अनुभवों से जवाब देते। कभी दोनों पक्षों के चेहरों पर मुस्कान होती तो कभी इसके विपरित।

दैनिक अखबारों में अपना-अपना पक्ष पढ़कर सभी जन पत्रकार महोदय की सच्चाई के लिए उनका धन्यवाद भी करते थे। जोकि कभी-कभार मुझे बुरा भी लगता था। ऐसा इसलिए क्योंकि मेरा मानना था कि यह तो उनका काम है। भला इसके लिए! क्यों? उनका धन्यवाद-धन्यवाद कहते फिरे हम। हमारा परिवार एक किसान है। हमें तो रोजाना रोटी-चावल खाने वाला मनुष्य आकर धन्यवाद नहीं कहता। अगर वो नहीं होंगे तो उनकी जगह उनका संपादक किसी और को मौका देगा और वह मानुष भी अपना पत्रकारिता का धर्म निभाएगा।

आज इस वर्तमान समय में हृदय को काफी पीड़ा होती है। जब मैं उस स्थान पर खड़ा होकर यह देखता हूं कि खुद का परिचय पत्रकार कह, खत्म करने वाले मानुष निहायत-बत्तमीज-मीजाज में नास्ता-खाना खाने, चाय-पानी-कोल्ड-ड्रिंक पीने के बाद उपहार के लिए लड़ने-भिड़ने लगते हैं। कुछ समय पहले जहां सब कुछ बहुत ही अदब से चल रहा होता है, उसी जगह का एक कोना उपहार का नाम सुनते ही कोलाहल से भर जाता है।

हमें दो! हमें दो! हम भी पत्रकार हैं! अरे भाई हम वरिष्ठ पत्रकार हैं, पहले हमें दीजिए। शोर के साथ धीरे-धीरे आवाजों का गर्माना… नहीं दोगे? अरे हमें नहीं दोगे? हम यहां २ घंटे से बैठे हुए हैं आपकी हर एक बात रिकॉर्ड की है और उसकी खबर हम चलाएंगे और आप हमें गिफ्ट देने से मना कर रहे हैं। कैसे लोग हैं आप भाई?

कैसे ‘Bachpan Ka Recharge’ जरूरत पड़ने पर आज भी काम आता है

इस बीच उस कार्यक्रम का जनसंपर्क ( पब्लिक रिलेशन ) संभाल रहे वह व्यक्ति भी पहुंच जाते हैं। अरे भाई… कौन से मीडिया से हैं आप? हैं! ये कौन सा मीडिया है? हम नहीं जानते इसे.. और नहीं देंगे आपको, बोल दिया ना! आप जाइए यहां से। आपके लिए हमारे पास कोई गिफ्ट नहीं है।

हम कौन से मीडिया से हैं? अरे हमने बड़े -बड़े अखबारों के साथ काम किया है… हमारा खुद का चैनल है, खुद का अखबार है। आप ऐसे कैसे गिफ्ट नहीं देंगे? हम अब आएं हैं तो हम गिफ्ट लेके ही जाएंगे।

शोर, गुर्रा-गुर्री, आंखें लाल कर पत्रकार और जनसंपर्क-कर्ता के बीच हाथापाई की स्थिति से पहले कार्यक्रम का आयोजनकर्ता भी वहां दस्तक दे देता है।

शांत हो जाएं… शांत हो जाएं। यह बिल्कुल वैसा ही था जैसे कि एक जमाने में लोकसभा स्पीकर और सांसद सुमित्रा महाजन सदन में शोर मचाते सांसदों को शांत होने की अपील के साथ मुस्कुराते हुए कहती थीं। लेकिन इस कार्यक्रम आयोजनकर्ता का प्रलोभन बड़ा शानदार रहा। इन भाईसाहब ने कहा कि आप सभी अपना-अपना मीडिया कार्ड दे दीजिए आप सभी को आपका गिफ्ट ‘हॉम डिलवर’ कर दिया जाएगा। गर्मा-गर्मी वाली जगह से निकलते ही आयोजनकार्ता के चेहरे की मुस्कान और अपने दोस्तों को मारी गई आंख काफी कुछ मौके पर ही साफ कर गई।

कैसे ‘Bachpan Ka Recharge’ जरूरत पड़ने पर आज भी काम आता है

इतने में मैंने भी जनसंपर्क-कर्ता जी की बांह पकड़ी और उन्हें वहां से दूर ले गया। और उनके कान में कहा- छोड़िए ना सर यह तो आज कल उपहार के लिए भिड़ने वाले पत्रकार हैं। वर्ना हमारे जमाने में पत्रकार बाजार में मिलने पर प्रेम से चाय पर चर्चा करते थे।

यह स्थिति मेरी आंखों देखी है। इससे पहले मैंने सुना जरुर था कि ऐसा भी होता है लेकिन यह देखने के बाद मैं इतना खूद से मजबूर हुआ कि मैंने सोचा क्यों न इसपर कुछ लिखा ही जाए। इसलिए लिखा जाए ताकि इस लेख को जो पढ़ें वो मीडिया बंधू ऐसा कृत्य न करें जिसकी वजह से पुरी इंडस्ट्री को खुद का ‘संवैधानिक चौथा स्तंभ’ कहने का गुमान खत्म हो जाए।

ध्यान दें:

मीडिया का अर्थ किसी शब्द कोश में मैंने दलाल पढ़ा था।

~लेखक शुभम मिश्रा (Author Shubham Mishra)

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