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चीन के प्रभाव में ओली ने फिर दिया विवादित ब्यान

ओली ने रविवार (10 जनवरी) को नेशनल असेंबली को संबोधित करते हुए कहा कि सुगौली संधि के मुताबिक कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख नेपाल का हिस्सा हैं और हम उन्हें हर हाल में वापस लेकर रहेंगे।

चीन के प्रभाव में नेपाल वेवजह भारत से अपने रिश्ते बिगाड़ता जा रहा है। एक तो नेपाल में पहले से राजनितीक संकट मंडरा रहा है, उपर से नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली लगातार विवादित ब्यान के चलते नेपाल अलग-थलग पड़ गया हैं।

दरअसल, ओली ने रविवार (10 जनवरी) को नेशनल असेंबली को संबोधित करते हुए कहा कि सुगौली संधि के मुताबिक कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख नेपाल का हिस्सा हैं और हम उन्हें हर हाल में वापस लेकर रहेंगे। ओली का यह बयान ऐसे समय आया है जब नेपाल के विदेश मंत्री 14 जनवरी को भारत की यात्रा पर आने वाले हैं।

ओली का दावा है कि सुगौली समझौते के मुताबिक महाकाली नदी के पूर्व पर स्थित कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र नेपाल के हैं। उन्होंने कहा है कि भारत से कूटनीतिक बातचीत के जरिए इन्हें वापस लिया जाएगा। हमारे विदेश मंत्री भारत जाने वाले हैं, जहां वह हमारे द्वारा प्रकाशित नए नक्शे का मुद्दा प्रमुखता से उठाएंगे।

ओली ने यह भी दावा किया है कि उनकी सरकार ने भारत और चीन दोनों के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने को लेकर लगातार काम किया है। उन्होंने आगे कहा कि हम भारत के साथ समानता के आधार पर रिश्ते बनाना चाहते हैं। जहां हम अपनी चिंताओं को खुलकर व्यक्त कर सकें. हमने कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख का जो मुद्दा उठाया है वो हमारी वास्तविक चिंताओं को दर्शाता है।

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गौरतलब है कि, पिछले साल नेपाल द्वारा एक विवादित नक्शा जारी किया गया था, जिसमें भारत के क्षेत्र को नेपाल का हिस्सा बताया था। इस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया जताते नेपाल सरकार को आगाह किया था कि क्षेत्र पर दावा जताने की इस तरह की कोशिशें स्वीकार नहीं की जाएंगी। नेपाल की यह कार्रवाई सीमा विवाद को वार्ता के जरिए सुलझाने के खिलाफ है। विशेषज्ञों ने ओली सरकार के इस कदम के पीछे चीन का हाथ होने की आशंका जताई थी। इसके बाद से नेपाल में ओली का विरोध तेज हो गया था।

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