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वह दिन जब कराची के हवाईअड्डे पर राष्ट्रपति पर हुआ हमला, पूरी दुनिया में मच गया था तहलका

पाकिस्तान जितना अपने लिए खतरनाक है उससे ज्यादा भयंकर दूसरों के लिए रहा है। विदेशी मेहमानों के लिए तो पाकिस्तान कभी सुरक्षित नहीं रहा। ऐसी एक घटना है नवंबर 1970 की, जो हुई तो पाकिस्तान में थी, मगर इसने पूरी दुनिया को हिला के रख दिया था।

पूरी दुनिया में पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जो आतंक का घर बन चुका है। ये एक ऐसा देश है जहां की इंटेलीजेंस एजेंसियों को भी यह पता नहीं चल पाता है कि कब कौन सिरफिरा, देश में ही तख्तापलट करने वाला है। अगर हम इतिहास के पन्नों को खंगालते हैं तो पता चलता है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी उग्रवाद आज से नहीं बल्कि दशकों से फल फूल रहे है । ये देश जितना अपने लिए खतरनाक है उससे ज्यादा भयंकर दूसरों के लिए रहा है। विदेशी मेहमानों के लिए तो पाकिस्तान कभी सुरक्षित नहीं रहा।

जब विदेशी मेहमानों के लिए पाकिस्तान बन गया काल

ऐसी एक घटना है नवंबर 1970 की, जो हुई तो पाकिस्तान में थी, मगर इसने पूरी दुनिया को हिला के रख दिया था । एक नवंबर, 1970 की सुबह 11 बजे कराची अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर रूस निर्मित विमान आईएल-18 ने कराची हवाईअड्डे पर लैंडिंग की। कुछ हाईप्रोफाइल विदेशी दंपती और उनके साथ आए मेहमान सीढ़ी के जरिये नीचे उतरे और हवाईअड्डे पर विमान के नजदीक लोगों से परिचय करने लगे।

इस दौरान पाकिस्तान सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारी और कराची के कई प्रशासनिक अधिकारी के साथ साथ भारी सुरक्षा इंतजाम मौजूद था । विमान से थोड़ी ही दूर अन्य गणमान्य नागरिक और मीडिया कर्मी भी वहां उपस्थित थे। वे उस विदेशी दंपती की आवभगत के साथ उनकी प्रतिक्रियाओं को नोट कर रहे थे।

तभी इसी बीच, अचानक से पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की एक कैटरिंग वैन उस वीआईपी विमान की ओर तेजी से बढ़ने लगी। यह वैन विमान के पीछे की ओर खड़ी थी लेकिन अचानक हुई इस हलचल से सब हक्के-बक्के थे। कोई कुछ समझ पाता इसके पहले ही तेज गति से आई वह वैन रिसेप्शन एरिया की ओर खड़े लोगों को बेरहमी से कुचलते हुए आगे बढ़ गई।

Attack on polland president in karanchi pakistan
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चारों तरफ हाहाकार मच गया। कई विदेशी मेहमान और मेजबान इस वैन की चपेट में आ गए थे। चीख-पुकार और दर्द से कराहते घायलों के बीच, वहां मौजूद सुरक्षाबलों ने उस वैन चालक को तो पकड़ लिया था, मगर उस दिन पाकिस्तान के माथे पर एक कलंक लग गया था क्योंकि विदेशी मेहमान हाईप्रोफाइल विदेशी जोड़ा था ।

हाईप्रोफाइल विदेशी जोड़ा कहां से आया था?

इस हमले में पोलैंड के उप विदेश मंत्री जगफ्रेड वेलिनक, पाकिस्तान के सूचना विभाग के फोटोग्राफर अशरफ बेग, पाकिस्तान की सरकारी समाचार एजेंसी एपीपी के फोटो संपादक यासीन और इंटेलीजेंस ब्यूरो के अधिकारी चौधरी नजर अहमद आदि गंभीर रूप से घायल हुए थे। इस कारण उनकी मौत हो गई। वहीं, पोलैंड के काउंसिल जनरल और कराची के महापौर समेत एक दर्जन लोग घायल हुए थे।

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हालांकि, इस हमले में वह विदेशी जोड़ा बाल-बाल बच गया। यह हाईप्रोफाइल विदेशी जोड़ा कोई और नहीं बल्कि पोलैंड के राष्ट्रपति मैरियन स्पिखेल्स्की और पत्नी बारबरा इस्तिखार्स्की थीं। क्योंकि वे उस वक्त थोड़ी दूर थे इसलिए, सुरक्षित बच गए थे। पोलैंड के राष्ट्रपति मैरियन स्पिखेल्स्की की आधिकारिक यात्रा के दौरान हुए इस हमले से पाकिस्तान से लेकर पोलैंड की सुरक्षा एजेंसियां हरकत में आ गई थी।

पोलैंड वापस जाते समय, उप विदेश मंत्री के पार्थिव शरीर को दूसरे ताबूत में स्थानांतरित कर दिया गया था
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आनन-फानन में राष्ट्रपति ने अपना पाकिस्तान दौर वहीं खत्म कर दिया। और कुछ ही घंटों बाद राष्ट्रपति ने पाकिस्तान से अपने साथी प्रतिनिधिमंडल के साथियों और उप विदेश मंत्री के पार्थिव शव के साथ पोलैंड के लिए उड़ान भरी। सुरक्षा एजेंसियों को आशंका थी कि दूसरा हमला भी हो सकता है। जल्दी इतनी थी कि उप विदेश मंत्री के शव वाला ताबूत भी ठीक तरह बंद नहीं किया गया।

हमलावर कौन था, क्या था मकसद?

हमले के तुरंत बाद सुरक्षा एजेंसियों ने कैटरिंग वैन चालक को तुरंत गिरफ्तार कर लिया था। उसकी पहचान 32 वर्षीय मोहम्मद अब्दुल्लाह फिरोज के रूप में हुई थी। फिरोज का रुझान कट्टरपंथी मजहबी उग्रवाद की ओर था। वह पाकिस्तानी सेना में ड्राइवर रह चुका था। 1969 में ही उसने पाकिस्तान एयरलाइंस में नौकरी शुरू की थी।

मोहम्मद फ़िरोज़ अब्दुल्लाह आतंकवादी
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शोधकर्ता पॉल मैगिंस्की ने लिखा कि अब्दुल्लाह फिरोज ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति को एक पत्र भी लिखा था, जिसमें उसने देश में शरिया कानून लागू करने की मांग की थी। तब लाहौर के अखबार दैनिक आजाद ने अपनी खबर में बताया था कि हमलावर फिरोज जमात-ए-इस्लामी का सदस्य था। उसके सीने पर जमात-ए-इस्लामी का बैज लगा हुआ था।

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मौत तक भी नहीं कबूला गुनाह

मामले की जांच पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में हुई। वहीं, सुनवाई विशेष सैन्य अदालत में की गई। जांच के दौरान मोहम्मद अब्दुल्लाह फिरोज ने अपना गुनाह कबूल नहीं किया था। कराची के डिस्ट्रिक्ट हॉल में सैन्य अदालत के पैनल लेफ्टिनेंट कर्नल अहमद साद बाजवा, मेजर मिर्जा मुर्तजा अली और एडिशनल सिटी मजिस्ट्रेट जनाब अरशत ने उसे सजा-ए-मौत का फैसला सुनाया।

विदेशी पत्रकारों के सामने हुई फांसी

मोहम्मद अब्दुल्लाह फिरोज को 14 जुलाई, 1971 को कराची की सेंट्रल जेल में फांसी के फंदे पर लटकाया गया। मामला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों वाला था, इसलिए मोहम्मद अब्दुल्लाह फिरोज की फांसी के कवरेज के लिए जेल में कई पत्रकार आमंत्रित किए गए थे। कराची के असिस्टेंट कमिश्नर जनाब मोहम्मद शफीक खान की मौजूदगी में उसे फांसी दी गई। मजहबी रस्मों के बाद उसे मलिर के क्रबिस्तान में दफना दिया गया।

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