दिल्लीविचार

सरकारी शिक्षा को आइना दिखाकर प्राइवेट शिक्षा को राज्यसभा भेजा

वर्ष 2022 के चुनावी नतीजों ने इतना शोर मचाया कि उस शोर में कई पार्टियां बहरी हो गईं। इस बहरेपन का इलाज उन सरकारी व्यवस्थाओं जिस पर उन्हे नाज है... वहां करवाने की जगह वो खुद प्राइवेट की गोदी में जाकर लोरी सुनने लगे।

वर्ष 2022 के चुनावी नतीजों ने इतना शोर मचाया कि उस शोर में कई पार्टियां बहरी हो गईं। इस बहरेपन का इलाज उन सरकारी व्यवस्थाओं जिस पर उन्हे नाज है… वहां करवाने की जगह वो खुद प्राइवेट की गोदी में जाकर लोरी सुनने लगे। लेकिन उस बहरी पार्टी को क्या ही पता था कि बहरे हुए कान लोरी नहीं सुन सकते।

शिक्षा व्यवस्था सरकारी होनी चाहिए। शिक्षा के लिए सरकार सबसे ज्यादा बजट देगी। उससे भी ज्यादा बजट विज्ञापन के लिए दिया जाएगा। मई का महीना आ गया है लेकिन अभी भी सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राएं किताबों के बिना ही प्रतिदिन 2 घंटे के लिए मिशन बुनियाद का झून-झूना हिला रहे हैं।

झून-झूने का शोर… खैर बहरों के लिए कैसा शोर… यहां तो सब शांति-शांति है। सवाल है कि राज्यसभा में प्राइवेट शिक्षा को कैसे बढ़ावा मिल सकता है। क्या यह एक ही सरकार का दोहरा चरित्र नहीं? अब इंफ्रास्ट्रक्चर को कैसे पढ़ेंगे बच्चे जब उनके पास किताब ही नहीं होगी। खैर आज बात यह नहीं है।

राज्यसभा में जब प्राइवेट शिक्षा वाली मानसिकता कुर्सी पर बैठेगी तब क्या वह सरकारी शिक्षा को अपनी कब्र से गुजरने की अनुमति देगी। प्राइवेट आदमी जोकि जीवन भर प्राइवेट शिक्षा के नाम पर बच्चों की जेब खाली करवाता आ रहा हो वह क्या सरकारी संस्थान को ठीक करने में अपनी असल भूमिका सांसद के रुप में निभा पाएगा। अलबत्ता वह तो यही चाहेगा की कैसे भी करके उसका प्राइवेट शिक्षा आगे बढ़े ताकी पांच साल के लिए मिली कुर्सी से सहद का रस निकाल जीवन भर के लिए वह मुरब्बा खाता रहे।

यह आपके भी समझ के पार होगा। सरकारी शिक्षा के नाम पर मतदान की मांग करने वाले लोग आज कैसे एक प्राइवेट शिक्षा वाले व्यक्ति को राज्यसभा भेज सकते हैं। क्या सच में सरकार यह मानना चाहती है कि चुनाव में जो कुछ हुआ उसमे उस प्राइवेट आदमी की बड़ी भूमिका थी। जिसको सिर्फ समझा जा सकता है कहीं लिखा या बोला नहीं जा सकता। खैर… ‘गांधी जी’ ही जाने वो किन-किन हाथों में कहां-कहां गए।

शब्द वही है, जो सुई की तरह चुभ रहा है। प्राइवेट शिक्षा वाले आदमी को राज्यसभा में। जिसके विश्वविद्यालय लाखों की फिस सिर्फ एक साल के लिए लेते हैं जबकि एक डिग्री को तीन से चार साल तो लगता ही है। ऐसे लोगों को बढ़ावा देना क्या राज्यसभा की मर्यादा को भंग करना नहीं। ऐसा कई कानून क्यों नहीं।

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आप क्या सोचते हैं। क्या आप भी बहरे हो गए हैं। क्या आप ने भी सोच लिया है कि आपके कुछ करने से कुछ नहीं होगा। क्या आपने अपने मन मना लिया है, शांत रहने के लिए, अपनी सोच को दबा कर दफन करने के लिए। शायद तभी ऐसा हो रहा है। आप को बेवकूफ बनाया जा रहा है। उम्मीद है आप जल्द ही अपना नींद से जागेंगे।

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