War of Lanka Book Review, Summary: लेखक अमीश ने फिर से सभी को चौंका दिया
War of Lanka Book Review, Summary: लंका का युद्ध, राम चंद्र श्रृंखला किताब 4, लेखक अमीश त्रिपाठी (Amish Tripathi)।
War of Lanka Book Review, Summary: लंका का युद्ध, राम चंद्र श्रृंखला किताब 4, लेखक अमीश त्रिपाठी (Amish Tripathi)। इस श्रृंखला में पहली तीन किताबों मे राम – इक्ष्वाकु के वंशज, सीता – मिथिला की योद्धा, रावण – आर्यवर्त का शत्रु शामिल हैं। लंका का युद्ध पहली तीनों किताबों की त्रिवेनी है। इस किताब में राम, सीता और रावण पर लिखी अमीश की तीनों किताबों का संगम होता है। क्योंकि इस किताब में लंका में युद्ध होता है। राम, सभी गाथाओं की तरह इस किताब में भी विजयी होते हैं पर यह किताब सुनाई गई सभी रामायणों से काभी भिन्न है।
लेखक अमीश त्रिपाठी का परिचय –
अमिश त्रिपाठी एक जाने-माने भारतीय लेखक हैं, जिन्हें उनकी प्रसिद्धि उनके मशहूर उपन्यासों के कारण मिली है। उनका जन्म 18 अक्टूबर 1974 को मुंबई में हुआ। अमिश ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) कोलकाता से अपनी पढ़ाई पूरी की है।
अमिश त्रिपाठी की पहली पुस्तक “इमोर्टल्स ऑफ़ मेलुहा” है जोकि 2010 में प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक उनकी शिव रचना त्रयी की पहली पुस्तक है। यह पुस्तक अमीश की तरफ से भारतीय मिथोलॉजी पर आधारित एक महान योद्धा शिव की कहानी है जिसे धार्मिक, ऐतिहासिक और फिलॉसॉफिक रूप में अमीश ने पेश किया है। इसी के साथ नागाओं का रहस्य और वायुपुत्रों की सपथ इसी कहानी के दुसरे और तीसरे भाग हैं। अमीश की लिखी हुई पुस्तकों में अमर भारत, धर्म, महाराज सुहेलदेव शामिल हैं।
किताब का नाम – लंका का युद्ध (War of Lanka)
लेखक – अमीश त्रिपाठी (Amish Tripathi)
प्रकाशक – हार्पर हिन्दी (Harper Collins Hindi)
प्रथम प्रकाशन – वर्ष 2023
कुल पृष्ठ – 467
अधिकतम मूल्य – 399 रुपये
प्रकार – काल्पनिक (Fiction/ Mythology)
लंका का युद्ध किताब से जुड़े प्रमुख पात्र –
राम, सीता, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, अन्नापूर्ण देवी, अरिष्टनेमी, कन्याकुमारी, रावण, कुंभकर्ण, इंद्रजीत, अकंपन, पृथ्वी, मंदोदरी, मारीच, वशिष्ठ, वायुपुत्र, मलयपुत्र, विभीषण, वालि, विश्वामित्र, वेदवती, समीची, सुरसा, हनुमान आदि।
लंका का युद्ध किताब का सारांश (War of Lanka Book Summary In Hindi):
यह किताब को सिर्फ उन्ही पाठाको को पढ़ने में आनंद आएगा जिन्होने राम चंद्र श्रृंखला कि पहली तीनों किताबों को पढ़ा हुआ हो। ऐसा इसलिए क्योंकि यह किताब तीनों (राम – इक्ष्वाकु के वंशज, सीता – मिथिला की योद्धा, रावण – आर्यवर्त का शत्रु) किताबों का मिश्रण है। किरदार, जगह और नाम ज्यादातर एक ही हैं। इस किताब की शुरुआत ही वहां से होती है जहां पर राम चंद्र श्रृंखला कि पहली तीनों किताबों का अंत होता है। मान लीजिए कि तीन कथाओं का संगम और फिर एक तीनों कथाओं के पात्रों को मिलाकर एक कथा इस किताब को आगे बढ़ाती है।
लंका का युद्ध, किताब का नाम ही यह साफ-साफ बता रहा है कि इसमें लंका में हुए युद्ध की बात की जाएगी। इस किताब की शुरुआत लंका के राजा रावण के जीवन के भयावह स्वप्न के साथ होती है जिसमें रावण अपनी प्रेमिका वेदवती के अंतिम छड़ों को देख कर तड़प रहा होता है। यह स्वप्न रावण को तब आता है, जब वह सीता का अपहरण कर लंका की तरफ अपने पुष्पक विमान में जा रहा होता है।
इसी के साथ ही लेखक आपको रावण – आर्यवर्त का शत्रु और सीता – मिथिला की योद्धा किताब के अंतिम भाग से आपको इस किताब के शुरुआत में ही जोड़ देते हैं। जहां लंका पहुंचने पर सीता को अशोक वाटिका में रखा जाता है जोकि लंका की राजधानी सिगिरिया से दूर है। सीता को दूर रखने का कारण लंका में फैली भयावह बिमारी है। रावण नहीं चाहता था कि सीता को किसी भी प्रकार का दुख पहुंचे इसके लिए उसने अशोक वाटिका में सीता के लिए भोजन, पुस्तक, वाद्य यंत्र आदि सुविधाएं उपलब्ध करवाई थीं।
इसी के साथ ही दूसरी तरफ जब राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ मलयपूत्र जटायू; इन्होने सीता को रावण से बचाते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था, का अंतिम संस्कार कर रहे होते हैं। इसी बीच पेड़ो के पीछे छीपे हनुमान वहां पहुंच जाते हैं। हनुमान को पहले लगता है कि रावण ने सीता को जान से मार दिया जिससे वह भी रोने लगते हैं। इस स्थिति को समझ राम उनको गले लगा कर बताते हैं कि यह चिता जो जल रही है वह मलयपूत्र जटायू की है। जिसके बाद हनुमान सीता को रावण के चंगूल से बचाने की योजना बनाने में लग जाते हैं।
वहीं रावण जब पहली बार सीता को ध्यान से देखता है तो उसे अपनी प्रेमिका वेदवती की याद आ जाती है। वेदवती की तरह हूबहू सीता का भी चेहरा था। जैसे वेदवती ने दूबारा जन्म ले लिया हो। रावण यह सब देख भौचका हो जाता है। रावण को मन ही में अपना वचन याद आता है जोकि उसने वेदवती को मरते समय दिया था। रावण की योजनाओं पर पानी फिर जाता है। कहां रावण यह सोच रहा था कि विश्वामित्र द्वारा बनाए जा रहे विष्णु का अपहरण कर मैं विश्वामित्र से मन चाहि औषधी के साथ पूरे भारत पर राज करुंगा और अब कहां उसी के सिर पर सीता की रक्षा का वचन आ गिरा।
रावण की सीता अपहरण को लेकर सारी योजनाएं खराब हो गई। इस बात को कुंभकरण भांप गए। इस वजह से कुंभकरण ने पहली शुरुआत कि और वो आशोक वाटिका में बैठी सीता से मिलने चले गए। अशोक वाटिका में अचानक आए रावण के भाई कुंभकरण को देख सीता काफी गुस्सा हो जाती हैं, लेकिन कुंभ उन्हे जब वेदवती का चित्र दिखाते हैं तो सीता चौंक जाती हैं। और पुछती हैं कि यह तस्वीर किसने बनाई है। असल में रावण ने उस तस्वीर को अपनी प्रेमिका वेदवती की याद में बनाई थी, जब सीता को यह पता चलता है तो सीता को इतना तो समझ में आ ही जाता है कि उनकी जन्मदात्री मां वेदवती ही हैं। लेकिन इसी के साथ उनके मन में संसय यह हो जाता है कि क्या उनका पिता रावण है। इस सवाल का जवाब स्वयं रावण, सुबह का नास्ता सीता के साथ करने की शर्त पर सीता को देता है। और बताता है कि असल में सीता का पिता कौन है।
इस किताब में रावण, कुंभकरण और सीता को एक साथ सुबह का नास्ता करते हुए बताया गया है। ये तीनों कई बार साथ में खाते हैं और यहां तक की राम-रावण के बीच होने वाले संग्राम का परिणाम पहले से ही इन तीनों ने साथ मिलकर तय कर लिया था। यानी की सीता को पता था कि क्या होने वाला है और इसी के साथ रावण यह सब क्यों कर रहा है। उनकी योजना में कुंभकरण भी शामिल हो जाते हैं।
दूसरी तरफ राम, लक्ष्मण, हनुमान के साथ गुरु वशिष्ठ भी आ जाते हैं। अब ये सब मिलकर सीता को वापस लाने के लिए गुप्त योजना बनाते हैं। इस योजना में राम का पक्ष है कि बिना किसी युद्ध के अगर हम सीता को वापस ला सकें तो बेहतर होगा , इससे किसी को मारना नहीं पड़ेगा। युद्ध सिर्फ विनाश करेगा। तीसरी तरफ मलयपुत्र प्रमुख जिनके हाथ में अगले विष्णु की जिम्मेदारी है वह विश्वामित्र अपनी अलग ही योजना को लेकर कार्य कर रहे हैं। वह अपने अनुयायी अरिष्टनेमी को अशोक वाटिका से सीतो को लेकर आने के लिए भेज देते हैं और कहते हैं कि जैसे सीता आएंगी हम वैसे ही सीता के साथ मिलकर रावण की लंका पर बदला लेने के लिए हमला बोल देंगे और इसे भारत माता के सम्मान के लिए युद्ध का नाम देकर सीता को अपना नया विष्णु घोषित कर देंगे।
एक तरफ से हनुमान और दूसरी तरफ से अरिष्टनेमी सीता को अशोक वाटिका से लेने रात के अंधेरे में पहुंच जाते हैं। हनुमान यहां उड़कर नहीं बल्की नाव से लंका आते हैं। यहां पहुंचकर दोनो ही एक दुसरे को चौंका देते हैं। सीता दोनों में से किसी के साथ आने पर राजी नहीं होती हैं। सीता, राम के नाम पत्र लिख हनुमान को दे देती हैं। जिसमें वह राम को विष्णु नाम से संबोधित कर खुद के लिए रावण से युद्ध करने का आग्रह करती हैं। साथ ही वायुपुत्र और मलयपुत्र दोनों को राम के पक्ष से लड़ने के लिए कहती हैं।
इसी में लेखक अमीश ने हनुमान की प्रेमिका सुरसा का भी किरदार लिखा है, जोकि हनुमान के साथ सीता को मनाने अशोक वाटिका आई हैं। सुरसा को हनुमान से बहुत प्रेम था लेकिन हनुमान एक ब्रम्हाचारी हैं जिन्होने शादी न करने की शपथ ली है। तो वहीं अरिष्टनेमी को सुरसा से प्यार है पर सुरसा को अरिष्टनेमी से प्यार नहीं है। पर ये तीनों आपस में अच्छे मित्र हैं। लंका से वापस लौटते समय तीनों एक साथ निकलने की योजना बनाते हैं।
लेकिन रास्ते में लंकाई सैनिक की नजर इन पर पड़ जाती है। इस भागम-भाग में जब सुरसा समुद्र के बीच नाव पर चढ़ रही होती है, तभी उनको एक तीर आके लगता है जिससे उनकी मौत हो जाती है। मौत भले ही कष्ट दाई थी लेकिन सुरसा ने अंतिम सांस अपने प्रेमी हनुमान की गोद में ली जिनकी आंखे आंसूओं से भरी थी, यह प्यार देखकर सुरसा ने सुकुन से अंतिम सांस ली। अरिष्टनेमी, सुरसा की मौत से तिलमिला उठते हैं जिसका बदला वो बाद में लंकाईओं को मार कर पूरा करते हैं।
इस बीच राम सबरीमाला मंदिर जाते हैं, जहां वह भगवान अयप्पा की पूजा तो करना चाहते हैं पर भगवान अयप्पा की पूजा करने से पहले ब्रह्मचारी का व्रत रखना होता है जोकि अभी राम का पूरा नहीं हुआ होता है तो ऐसे में वह दूर से ही प्रमाण करते हैं और मंदिर के अंदर नहीं जाते हैं। इसी मंदिर की मुखिया सबरी जोकि एक पद है उनके लिए जोकि मंदिर की देखभाल करते हैं, वह राम से मिलती हैं। गुरु वशिष्ठ, शबरी को सीता अपहरण के बारे में बताते हैं। शबरी राम को लेकर एक विशेष मूर्ति के पास जाती हैं।
शबरी, राम से मूत्रि जोकि एक सांड और छोटी सी बच्ची की है, को देखकर कुछ प्रश्न करती हैं। जिसका जवाब उतावले से हुए लक्ष्मण पहले दे देते हैं जिसे सुनकर शबरी अनसुना कर देती हैं क्योंकि ऐसा उत्तर वह पहले भी सुन चुकी हैं। जब राम उत्तर देते हैं तो उसे सुनकर शबरी प्रसन्न हो जाती हैं और वशिष्ठ को उन्हे अगले विष्णु बनाने की सहमती देती हैं। इसी के साथ रावण को हराने के लिए शबरी राम को राजा वालि से मदद मिलने की सलाह देती हैं। राजा वालि कुछ दिनों बाद खुद भगवान रुद्र और विष्णु मोहिनी के पुत्र भगवान अयप्पा के दर्शन करने आता है जहां राम उससे मुलाकात करते हैं। यहां वालि राम को द्वंद का निमंत्रण दे देता है। इस द्वंद में अगर राम जितेंगे तभी वालि अपनी सेना राम को देगा।
राम और वालि में तलवार से द्वंद होता है। वालि मारा जाता है और वह अपने पुत्र अंगद से राम की मदद करने के लिए वचन मांगता है। इसी के साथ अंगद को किष्किंदा का राजा बना दिया जाता है। यहां पर अंगद, वालि और सुग्रीव को लेकर एक बहुत ही बड़ा राज दिया गया है। जिसे यहां प्रगट करना सही नहीं होगा, इसके लिए आपको किताब जरुर पढ़नी चाहिए। लेकिन आपको आगे बताने से पहले बता दें कि सुग्रीव का लंका के युद्ध में कोई भी योगदान नहीं है। सिवाय एक योगदान के जोकि उसने दसकों पहले ही कर दिया था।
यहां पर सबसे चौका देनी वाली बात जोकि अमीश ने लिखी है वो है कि भरत और शत्रुघ्न अपने भईया की मदद करने के लिए अयोध्या की सारी सेना को लेकर समुद्र किनारे पहुंच जाते हैं। शत्रुघ्न इस बात पर विचार कर रहे हैं कि अब समुद्र के ऊपर पुल को कैसे बनाया जाए। समुद्र के ऊपर पुल को कैसे बनाया गया इसको लेकर किताब में काफी कुछ बताया गया है। जिसकी मदद से शत्रुघ्न पुल बनाने की तैयारी शुरु कर देते हैं। यहां वानर सेना के नल-नील नहीं बल्कि राम के भाई शत्रुघ्न. समुद्र के ऊपर पुल का निर्माण करते हैं।
सीता के आदेशानुसार मलयपुत्र और वायुपुत्र पहली बार एक साथ राम की मदद करने के लिए समुद्र किनारे एकत्र हो जाते हैं। जिससे राम की सेना अयोध्या से आई सेना को मिलाकर एक लाख 60 हजार तक पहुंच जाती है। इस सेना के पास लड़ाका हाथी भी होते हैं जोकि रावण के पास नहीं होते और इसी से राम की सेना आधा युद्ध जीत लेती है।
एक तरफ पुल निर्माण हो रहा होता है तो दूसरी तरफ सीता रोज सवेरे रावण और कुंभकरण के साथ सुबह के नास्ते पर अपनी मां वेदवती और पिता के बारे में कहानियां सुनती हैं। साथ ही आने वाले भारत के भविष्य पर चर्चा करती हैं। रावण, बहुत बड़ा बलिदान देने की योजना बना रहा होता है। योजना में रावण के मरने की तैयारी और विश्वामित्र की योजना को सफल बनाने कि बात होती है। इस योजना में उसका भाई कुंभ भी उसी के साथ शामिल होता है। रावण, राम से अंतिम सांस तक टक्कर की लड़ाई लड़ने को लेकर हंसता है।
इधर जैसे ही भरत और लक्ष्मण, लंका को नाव की मदद से दूसरी तरफ घेरने की योजना बनाते हैं वैसे ही विभिषण भी उनसे हाथ मिला लेते हैं। विभिषण, भरत और लक्ष्मण को लंका की सारी सुंरगों का रास्ता दे देता है। जिससे लक्ष्मण आक्रमण कर लंका को दूसरी तरफ से घेर लेते हैं। और इसी बीच इंद्रजीत को राम सेतु के बारे में पता लग जाता है। और वह सारी सेनाओं को लेकर दूसरी तरफ अपने पिता और चाचा के साथ चला जाता है। जिसके बाद यहां पर शुरु होती है लंका की अंतिम लड़ाई।
युद्ध के प्रारंभ होने से पहले रावण और कुंभकरण सीता से मिलने आते हैं। रावण यहां सीता से अंतिम विदाई के रुप में कुछ वचन मांगता है और फिर हंसता हुआ युद्ध के लिए चला जाता है। युद्ध के निर्णायक दिन के आने के बीच कुछ दिन बीत जाते हैं जिसमें युद्ध की रणनीति और अन्य चीजों को लेकर इस किताब में जिक्र मिलता है। दो तरफ से घेरने के बाद भी रावण, राम की सेना पर हमला करने के लिए लंका के दुर्ग से बाहर नहीं निकलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि रावण को लंका के अंदर सबकुछ उपलब्ध था, वह चाहता था कि राम कि सेना भुख प्यास के मारे ही खड़ी-खड़ी बाहर मर जाए।
इसका भी समाधान राम ने निकाल लिया। हनुमान ने सलाह दी कि अगर हम लंका कि गेहूं की फसल जोकि खेतों में पक कर तैयार है उसमें आग लगा दें तो रावण को मजबूरन लड़ने के लिए बाहर आना ही होगा। और हुआ भी ऐसा ही हनुमान की अध्यक्षता में सैनिक रात को इन खेतों में आग लगा देते हैं। जिससे लंका जल उठती है और उसके अगले ही दिन रावण अपनी सेना के साथ बाहर युद्ध करने के लिए आ जाता है।
पहले दिन के युद्ध में रावण के भाई कुंभकरण और मामा मारीच को राम की सेना मार देती है। तो वहीं दूसरे दिन राम की सेना के ज्यादा से ज्यादा सैनिक मारने के लिए रावण का बेटा इंद्रजीत पुष्पक विमान में सवार होकर युद्ध करने आता है। इंद्रजीत, विमान में बैठकर एक के बाद एक हमले कर राम की सेना को विचलीत कर देता है। थोड़े समय के लिए ही सही पर ऐसा लगता है कि अब युद्ध का परिणाम रावण के खेमे में जा रहा है। इंद्रजीत एक-एक करके ज्यादा से ज्यादा हाथी के महावतो को मार देता है जिससे हाथी बेकाबू होकर अब अयोध्या की सेना के सैनिकों को ही कुचलने लगते हैं। यह देखकर राम जिस तरह से अपने शौर्य का परिचय देते हैं उसे सब देखते ही रह जाते हैं।
इसके कुछ समय में ही इंद्रजीत, पुष्पक विमान से तीर चलाकर लक्षम्ण को घायल कर देता है जिसे देख भरत ऐसा भाला खींच कर मारते हैं कि सीधा इंद्रजीत की छाती में वह जाकर लग जाता है और इंद्रजीत का शरीर पुष्पक विमान से रस्सी में बंधा नीचे छुलने लगता है। युद्ध में जब रावण का बेटा इंद्रजीत मारा जाता है तब रावण खुले में राम को ‘इंद्र का द्वंद’ की चुनौती दे देता है। इस द्वंद में जबतक किसी एक की मौत न हो जाए तब तक के लिए इस द्वंद का परिणाम नहीं आता है। ऐसा करके रावण ने राम की दया से बचते हुए अपने लिए मौत पक्की कर ली थी। लड़ाई के प्रसंग को लेकर लेखक अमीश ने काफी कुछ लिखा है जिसे किताब को पढ़ने पर ही मजा आएगा। यहां सारांश में उसे नहीं बताया जा सकता है।
रावण ने इंद्र के द्वंद से पहले राम से कुल नौ वचन मांगता है। जिन्हे राम ने रावण की मौत के बाद एक-एक करके पूरा किया। इसमें से एक उसकी पत्नी मंदोदरी को लेकर होता है। रावण चाहता है कि मंदोदरी, रावण की मौत के बाद लंका में ना रहें। साथ ही रावण नहीं चाहता कि लंका का संपूर्ण राजा विभिषण बने। राम ने इसका भी हल निकाल लिया और अपने वचन को निभाया। रावण, कुंभकरण, इंद्रजीत और मारीच को शव को शिमौली में दफनाया गया और इन सभी का अंतिम संस्कार भी राम ने अपने हाथों से किया क्योंकि यही रावण ने वचन में राम से मांगा होता है।
इसी के साथ किताब के अंत में पुष्पक विमान में बैठ अयोध्या नगरी की तरफ आते हुए मंदोदरी और गुरु वशिष्ठ आपस में बात करते हैं मेलूहा के बारे में और एक नए भारत के बारे में जिसे अब राम, सीता और भरत को मिलकर करना है। जिस दिन यह पुष्पक विमान अयोध्या में आता है उसी दिन से दिवाली का त्योहार प्रत्येक वर्ष भारत में मनाया जाने लगता है।
लंका का युद्ध किताब की समीक्षा (War of Lanka Book Review):
अमीश त्रिपाठी एक मंझे हुए लेखक हैं, उन्हे पता है कि पाठकों को कहां रोमांच चाहिए और कहां ज्ञान चाहिए। उनकी लेखनी हमेशा से ही पाठको को और पढ़ने पर मजबूर कर देती है। राम चंद्र श्रृंखला की 4 किताबों में यह किताब थोड़ी सी फिकी है। जिस तरह से तीनों किताबों में राम, रावण और सीता को लेकर कहानी का जिक्र है अगर आप उसे पढ़ने के बाद इस किताब को पढ़ना शुरु करेंगे तो कहीं न कहीं आपको लग ही जाएगा कि लेखक अमीश जल्द ही कहानी को खत्म करने की फिराक मे हैं। हिंदी अनुवाद थोड़ा सा इस बार इसके अंग्रेजी भाषा से फिका है।
इसमें यह उम्मीद थी कि अमीश, हनुमान के बारे में ज्यादा विस्तार से बताएंगे लेकिन फिर उन्होने ऐसा कुछ नहीं किया। हनुमान, एक प्रमुख पात्र हैं लेकिन उनके भूतकाल के बारे में इस किताब में ज्यादा जिक्र नहीं मिला। युद्ध के रोमांच को अमीश ने दो अधूरे दिनों में पूरा कर दिया। जहां आपको युद्ध की बारिकियों को बारे में कम चर्चा की गई है। सबसे ज्यादा दुख कुंभकरण के अंतिम समय के लेख को पढ़कर लगा। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां लेखक उसे और भी रचनात्मक तरीके से जिक्र कर सकते थे। इसी के साथ रावण के मामा मारीच की मौच को बस एक वाक्य में बता कर खत्म कर दिया।
इस किताब में युद्ध के पिछे कैकसी और सुपनखा के बारे में भी कम ही जिक्र मिला। युद्ध का एक अहम कारण सुपनखा पर लक्ष्मण की तलवार से घाव भी था लेकिन युद्ध हो रहा है और उस पात्र का जिक्र तक नहीं। इतना ही नहीं समीचि जोकि एक गज़ब की महिला योद्धा और खर की प्रेमिका है उसको लेकर भी ज्यादा कुछ नहीं मिला इस किताब में। क्या समीचि ने रावण की तरफ से युद्ध लड़ा, युद्ध के बाद समीचि का क्या हुआ, क्या उसे कोई सजा मिली, ऐसे कई सवाल दिमाग में ही रह गए।
रावण की बुरी आदतों के बारे में रावण – आर्यवर्त का शत्रु किताब में बकायदा जिक्र है, पर क्या रावण ने सीता से मिलने के बाद उन बुरी आदतों को छोड़ दिया था या फिर वह बस सीता के सामने अच्छा बनना चाहता था। रावण की काम भावना को शांत करने में कैद की गई महिलाओं का क्या हुआ। रावण, जिस अंतिम क्रिया का जिक्र करता है उसके बारे में भी उम्मीद थी कि अमीश विस्तार से बताएंगे कि आखिर क्यों ब्राम्हण एक पक्ष अपने शव को जमीन में दफन करते थे, शव को आग नहीं लगाई जाती थी। इसको लेकर भी ज्यादा कुछ नहीं है।
किताब की भाषा काफी सरल है। हां, जरुर ही कुछ एक ऐसे शब्द हैं जिन्हे आप पहली बार पढ़ सकते हैं। पर जब पुल निर्माण को लेकर अमीश, ज्ञान की बाते लिखते हैं तो वह हिस्सा रोमांच को खत्म करने लगता है। ऐसा लगता है कि यह अमीश ने ही लिखा है या किसी और ने। इस किताब में आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि अब आगे क्या होने वाला है जोकि किताब की सबसे कमजोर कड़ी है। किताब में कौतुहल की कमी है। इस किताब में ऐसे कई रहस्य उजागर किए हैं उनके ऊपर साफ आसमान के नीचे बवाल हो सकता है।
इनमें से लक्ष्मण नहीं बल्की भरत, इंद्रजीत को जान से मारते हैं। ऐसे कई विवाद हैं जिन्हे पढ़ने के बाद इंसान का पहले पढ़ी गई रामायण से भरोसा उठने लगेगा या फिर वह इस किताब पर आक्रमक हो जाएगा। किताब में सुरसा, हनुमान की प्रेमिका का आना यह चौका देना वाला बिंदू था। इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।
किताब में राम, सीता और भरत का किरदार सबसे ज्यादा प्रेरणादायक है। इन तीनों की व्याचारिक तिकड़ी कमाल की है। जिस तरह से समस्याओं को लेकर इन तीनों का नजरिया है उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि बस इनकी तरह ही बनना है। इनके आदर्श, विचार और परीक्षा के समय पर अपनी शिक्षा पर अडिगतापन, कमाल का है। इस किताब में आपको रावण भी प्रोत्साहन कर सकता है। इस किताब में कई ऐसी बातें हैं जो सच में प्रोत्साहन का काम करती हैं। मंदोदरी का ऐसा चित्रण, आपने पहले कभी नहीं पड़ा और जाना होगा। इसमें मंदोदरी के किरदार को पढ़कर आप उन्हे गर्व की नजर से देखने लगेंगे। जोकि अपने पति, पुत्र और देवर से ऊपर धर्म और सत्य की राह चुनती हैं।
कुल मिलाकर यह किताब पढ़ने लायक है। किताब में भरपूर ऐसी सामाग्री हैं जिसे जानकर आप लोगों से बहस कर सकते हैं और सच-झूठ के बीच कहीं खो भी सकते हैं। किताब में कुल 479 पृष्ठ हैं जोकि इस किताब न ही ज्यादा बड़ी और छोटी बनाते हैं। किताब की तारीफ देश और विदेश के कई प्रसिद्ध लेखकों और विचारकों ने की है। इसलिए अगर आपको रामायण को एक अलग नजरिए से देखना है तो इस किताब को जरुर ही पढ़े।
लंका का युद्ध किताब से जुड़े कुछ सवाल –
Q: लंका का युद्ध किसके बारे में है (What is the book about?)
A: लंका का युद्ध किताब, रामचंद्र श्रृंखला की चौथी किताब है जिसे लेखक अमीश त्रिपाठी ने लिखा है। इसमें रामायण की कहानी को अपनी लेखन शक्ति के हिसाब से अमीश ने नए अंदाज में लिखने का प्रयास किया है। इस किताब में राम और रावण के बीच हुए महान युद्ध की गाथा है। (War of Lanka is the fourth book in Amish Tripathi’s Ram Chandra Series, which retells the Ramayana from a modern perspective. The book tells the story of the war between Ram and Raavan, and the epic battle that ensues.)
Q: लंका का युद्ध किताब का लेखक कौन है (Who is the author of the book)?
A: लेखक अमीश त्रिपाठी जोकि भारतीय मूल्क के लेखकों में से सबसे ज्यादा चर्चित लेखकों में से एक है। उनके कामों में शिवा त्रयलोजी और महाराज सुहेलदेव आदि शामिल हैं। (Amish Tripathi is a bestselling Indian author who is known for his books on mythology and history. His other works include The Shiva Trilogy and The Legend of Suheldev.)
Q: लंका का युद्ध किताब का प्रकाशन कब हुआ था (When was the book published)?
A: इस किताब का प्रकाशन फरवरी 2023 में हुआ था। (War of Lanka was published in February 2023.)
Q: लंका का युद्ध किताब कितनी बड़ी है। (How long is the book?)
A: इस किताब में लगभग 479 पृष्ठ हैं। (The book is 479 pages long.)
Q: क्या लंका का युद्ध इस श्रृंखला की अंतिम किताब है (Is War of Lanka the last book in the series)?
A: नहीं, लंका का युद्ध इस श्रृंखला कि अंतिम किताब नहीं है। इस किताब के अंत में इस बात को लेकर बताया गया है कि उनकी अगली किताब मेलूहा का उत्थान हो सकती है। जोकि इस श्रृंखला की पांचवी किताब होगी। (No, War of Lanka is not the last book in the series. Amish Tripathi has said that he plans to write a fifth and final book in the series, but he has not yet announced a release date.)
Q: लंका का युद्ध किताब की कुछ थीम के बारे में बताएं (What are some of the themes of the book)?
A: कुल थीम में कुछ निम्नलिखित हैं (Some of the themes of the book include):
- बुराई और अच्छाई के बीच में युद्ध (The battle between good and evil)
- धर्म का महत्व (The importance of dharma)
- प्रेम की शक्ति (The power of love)
- लड़ाई कि कीमत (The cost of war)
Q: लंका का युद्ध किताब से जुड़े कुछ और समीक्षा क्या हैं (What are some of the reviews of the book?)
A: पाठकों से लंका का युद्ध किताब को लेकर अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। (War of Lanka has received mostly positive reviews from critics. Publishers Weekly called it “a sweeping, epic tale of love, loss, and redemption”. The Hindu said that it was “a masterful retelling of the Ramayana that will stay with you long after you finish reading it”.)
Q: लंका का युद्ध किताब को कहां से खरीदा जा सकता है (Where can I buy the book?)
A: यह किताब आप किसी भी ऑनलाइन या नजदीकि किताब की दुकान से खरीद सकते हैं। (War of Lanka is available for purchase online and in bookstores.)