वो प्रधानमंत्री जिसके ऑफिस से हो रही थी जासूसी, भारत से बेचे जा रहे थे खुफिया कागज
16 जनवरी, 1985 की रात करीब 10:30 बजे थे. दिल्ली में जबरदस्त ठंड थी. हेली रोड में मौजूद ऑफिस में एक गाड़ी आकर रुकती है. आईबी ऑफिसर दूर से ही निगरानी कर रहे थे. उन्होंने देखा कि प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीसी एलेक्जेंडर के PA पूकट गोपालन एक ब्रीफ़केस लिए ऑफिस के अंदर जा रहे है. आईबी ऑफिसर बिना समय गंवाए दरवाजे का गेट खटखटाते है. दरवाज़ा खुलते ही इंटेलिजेंस ब्यूरो की टीम धड़धड़ा कर कमरे में दाख़िल हो जाती है. मेज पर बेहतरीन स्कॉच व्हिस्की की 14 बोतलें रखी थी. उसके ठीक बगल में सिर्फ़ डेढ़ घंटे पहले हुई कैबिनेट बैठक के नोट्स रखे हुए थे.
29 दिसंबर 1981 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पश्चिम बंगाल के राजभवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहीं थी. तभी उनकी नजर प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली से आए आईबी के उच्च अधिकारी T. V. Rajeswar पर पड़ी. इंदिरा गांधी थोड़ी हैरान थी कि आईबी के निदेशक खुद पश्चिम बंगाल क्यों आए है. प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद इंदिरा गांधी T. V. Rajeswar से अंग्रेजी में पूछतीं है कि “सब ठीक है न ऑफिसर”. इस सवाल के जवाब में T. V. Rajeswar कहते है कि “शायद नहीं मैडम सर”. आईबी के निदेशक के जवाब से इंदिरा गांधी हैरान थी. दोनो के बीच में कुछ देर बात होती है और इंदिरा गांधी ने T. V. Rajeswar को दिल्ली में मिलने के लिए कहती है.
प्रधानमंत्री आवास में T. V. Rajeswar जाकर इंदिरा गांधी से मुलाकात करते है और उनसे बताते है कि मैडम हमें सीक्रेट डॉक्युमेंट्स और यूओ नोट लीक होने की जानकारी है. इंदिरा गांधी ने पूछा कि कौन है वो लोग. टी वी राजेश्वर जवाब देते है कि फिलहाल हम लोग पता लगा रहे है लेकिन जरूर कोई प्रभावशाली है जिसके पास लगभग हर जानकारी होती है. इंदिरा गांधी ने पूरा जासूसी नेटवर्क खत्म करने के लिए बोलकर मीटिंग खत्म कर दी.
इस मीटिंग के बाद अगले 3 साल तक कोई भी मीटिंग इस विषय को लेकर नहीं रखी गई. क्योंकि एक रिपोर्ट के मुताबिक उस समय खालिस्तान आंदोलन के चलते आईबी का पूरा ध्यान पंजाब पर था.
जब श्रीलंका के पास था रॉ का ख़ुफ़िया कागज
1983 के अंतिम दिनों में श्रीलंका के ऑफिसर्स भारत आए हुए थे. दिल्ली में जब भारत और श्रीलंका के अधिकारियों के बीच बैठक हो रही थी तभी श्रीलंका के एक अधिकारी ने भारतीय अधिकारियों को रॉ का एक टॉप सीक्रेट दस्तावेज़ दिया. उस दस्तावेज को देखकर सभी अधिकारी हैरान थे. उस कागज में बताया गया था कि श्रीलंका के बारे में भारत सरकार की क्या सोच है. और ये दस्तावेज रॉ के टॉप अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के लिए लिखा था. भारत के लिए ये शर्मसार करने वाला दस्तावेज़ था. खुफ़िया अधिकारी इस बात पर दंग थे कि ये दस्तावेज़ श्रीलंका के पास पहुंचा कैसे?
जांच शुरू हो गई. हाई लेवल टीम बनाई गई. महीनों जांच हुई. उस टीम ने जांच में पाया कि जो श्रीलंका के अधिकारी कागज दिखा रहे थे उस कागज की सिर्फ तीन प्रतियां बनाई गई थी. दो कॉपी तो खुद रॉ के उच्चाधिकारियों के पास थीं और एक प्रति प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई थी. ख़ुफ़िया अधिकारी अब लगभग समझ चुके थे कि जो भी दस्तावेज या खबर लीक हो रही है वो सिर्फ टॉप लेवल के ऑफिस से हो रही है. रॉ की टीम इस ख़ुफ़िया नेटवर्क का भंडाफोड़ कर पाती कि इतने में इंदिरा गांधी की हत्या हो जाती है. पूरे देश में शोक की लहर थी. एक तरफ खालिस्तानी समर्थक अपने चरम पर थे और दूसरी तरफ देश के प्रधानमंत्री की उनके ही बॉडीगार्ड ने हत्या कर दी थी. इंदिरा गांधी की हत्या उनके बॉडीगार्ड ने की थी इसीलिए अब रॉ और आईबी की टीम PMO के सभी अफसरों पर कड़ी निगरानी करने लगी. सत्ता के गलियारे में हर शख़्स शक के घेरे में आ चुका था. राष्ट्रपति कार्यालय के बड़े अधिकारियों तक की गतिविधियों पर नज़र रखी जाने लगी. लेकिन इस सबके बावजूद वो ख़ुफ़िया तंत्र पकड़ में नहीं आ रहा था.
ऐसे पकड़ में आया विदेशी जासूस
नवम्बर 1984 का महीना आईबी अफसरों के लिए तोहफे जैसा था. एक तरफ इंदिरा गांधी की हत्या के लिए आईबी टीम की किरकरी हो रही थी और दूसरी तरफ आईबी टीम उस ख़ुफ़िया तंत्र का पर्दाफाश करने वाली थी जिसकी उम्मीद वो कब से लगाएं बैठे थे. CBI में काम करने वाले वेद प्रकाश शर्मा लगभग हर दिन अपने खास दोस्त सुभाष शर्मा की दुकान पर जाया करते थे. दिल्ली के बाराखंबा में सुभाष शर्मा की फोटो कॉपी की दुकान थी. वेद प्रकाश शर्मा रम के शौकीन थे. वेद प्रकाश अक्सर सुभाष शर्मा की दुकान पहुंच जाते थे.
नवम्बर के अंतिम दिनों में करीब रात के 7-8 बजे वेद प्रकाश अपने दोस्त सुभाष शर्मा की दुकान में बैठे थे. एक व्यक्ति कुछ कागज लेकर दुकान में आता है. सुभाष शर्मा और उस व्यक्ति की बातों से ऐसा लग रहा था कि वो व्यक्ति सुभाष की दुकान का रेगुलर कस्टमर है. वेद प्रकाश की नजर गलती से एक कागज पर पड़ती है जिसपर असम से जुडी कुछ बाते लिखी थी. उसी पेज पर लिखा हुआ सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो, वेद प्रकाश को चौकन्ना कर देता है. वेद प्रकाश का अनुभव साफ साफ कह रहा था कि कुछ गड़बड़ है.
वेद प्रकाश जब तक कुछ समझ पाते कि तब तक वो व्यक्ति फोटो कॉपी कराकर जा चुका था. हालांकि मामले की गंभीरता को समझते हुए वेद प्रकाश अगली सुबह आईबी अतिरिक्त निदेशक जे एन रॉय के घर पहुंच जाते है. उन्होंने पिछली रात को घटे पूरे घटनाक्रम की जानकारी जे एन रॉय की दी. राय ने उसी दिन एक टीम गठित कर दी. उस टीम ने दुकान जाकर काम चलाऊं तलाशी ली और वापस आकर जे एन रॉय को सूचना दी कि इस बात को साबित करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं है. जे एन रॉय ने वेद प्रकाश शर्मा को भी इस बात की जानकारी दे दी थी.
वेद प्रकाश का अनुभव और आत्मविश्वास कह रहा था कि जरूर कुछ गड़बड़ है. अब वेद प्रकाश अब इस उम्मीद से कि वो फोटो कॉपी वाला व्यक्ति फिर दिखेगा इसीलिए वो अपने दोस्त सुभाष शर्मा की दुकान रोज आने लगे. ये सिलसिला कई दिनों तक जारी रहा. और फिर वो एक दिन आ ही गया जिसका इंतजार वेद प्रकाश शर्मा कई दिनों से कर रहे थे. फोटो कॉपी कराने के लिए वही व्यक्ति उस दुकान में पहुंचा. वेद प्रकाश सबूत इकट्ठा करना चाहते थे इसीलिए उन्होंने उसके पास से एक कागज़ चुराकर अपने कोट की जेब में डाल लिए. उन्होंने उस कागज़ ध्यान से पढ़ा तो पाया कि वो इंटेलिजेंस ब्यूरो का एक कागज़ था. अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि उनका शक सही था.
वेद प्रकाश शर्मा उसी रात वहाँ से सीधे अपने पूर्व बॉस और वर्तमान में आईबी अतिरिक्त निदेशक जेएन रॉय के पास गए. रॉय को कागज देते हुए वेद प्रकाश बड़बड़ाने लगे. उन्होंने कहा पूरा सिस्टम खोखला करके रख दिया है. आपके ऑफिसर्स कहने के बावजूद कुछ नहीं कर पा रहे है. रॉय कागज देखते ही चौक गए. उन्होंने इस बात की जानकारी रॉ के टॉप अधिकारियों तक पहुंचाई. चूंकि 20 दिन पहले ही इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी इसीलिए सभी लोग जांच में लगे हुए थे. लेकिन मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए जांच कमेटी बना दी गई. अब इंटेलिजेंस ब्यूरो के लोगों ने सादे कपड़ों में फोटो कॉपी की दुकान की निगरानी शुरू कर दी. अफसरों ने उस फोटो कॉपी वाले आदमी पर नजर रखना शुरू कर दिया. उन्होंने देखा कि वो फोटो कॉपी कराकर हेली रोड में मौजूद एसएलएम मानेक लाल के दफ़्तर में जा रहा है. तभी दफ़्तर पर भी 24 घंटे की निगरानी बैठा दी गई. 15 दिनों की निगरानी के बाद इस रैकेट में शामिल सभी लोगों की पहचान कर ली गई. 1 जनवरी 1985 के दिन देश के नए प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इस ख़ुफ़िया तंत्र की ब्रीफिंग दी गई. प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस जांच को तेज करने के निर्देश दिए.
एक तरफ शराब दूसरी तरफ कागज
16 जनवरी, 1985 की रात करीब 10:30 बजे थे. दिल्ली में जबरदस्त ठंड थी. हेली रोड में मौजूद मानेकलाल इंडस्ट्रीज के ऑफिस में एक गाड़ी आकर रुकती है. आईबी ऑफिसर दूर से ही निगरानी कर रहे थे. उन्होंने देखा कि प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पीसी एलेक्जेंडर के पर्सनल असिस्टेंट पूकट गोपालन एक ब्रीफ़केस लिए ऑफिस के अंदर जा रहे है. आईबी ऑफिसर बिना समय गंवाए दरवाजे का गेट खटखटाते है. दरवाज़ा खुलते ही इंटेलिजेंस ब्यूरो की टीम धड़धड़ा कर कमरे में दाख़िल हो जाती है. मेज पर बेहतरीन स्कॉच व्हिस्की की 14 बोतलें रखी थी. उसके ठीक बगल में सिर्फ़ डेढ़ घंटे पहले हुई कैबिनेट बैठक के नोट्स रखे हुए थे. उस कमरे में दो लोग थे. एक तो खुद गोपालन और दूसरे था कूमर नारायण.
कौन था जासूस कूमर नारायण ?
कूमर नारायण का पूरा नाम चित्तर वेंकट नारायण था जोकि सन 1949 में विदेश मंत्रालय में एक स्टेनोग्राफ़र था. चूंकि उस जमाने में स्टेनोग्राफ़रों की गोपनीय सूचनाओं तक ख़ासी पहुंच होती थी इसीलिए स्टेनोग्राफ़र महज़ टाइपिस्ट ही नहीं थे, बल्कि उनके पास जो सूचनाएं होती थी, वो सभी के पास नहीं होती थी. कुछ साल के बाद उसने सन 1959 मे इस्तीफ़ा देकर इंजीनियरिंग कंपनी SML मानेकलाल में 7000 की तनख्वाह में काम करना शुरू कर दिया. फ्रांस ने मौके का फायदा उठाया. फ्रांस समझता था कि कूमर नारायण के पास सरकार में काम करने वाले लोगों का एक जबरदस्त नेटवर्क है. उसने कूमर नारायण को अपने पाले में लिया और उसे पैसे से मदद करने लगा. यही नहीं, फ़्रांस के साथ साथ पूर्वी जर्मनी, पश्चिमी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, सोवियत संघ और पोलैंड के दूतावासों ने भी कूमर नारायण से संपर्क बना लिया. अब कूमर नारायण उन तक गोपनीय दस्तावेज़ पहुंचाने लग. सालों बाद फ़्रेंच जासूसी संस्था डीजीएसई के प्रमुख पाएरे मारियो ने खुद की तारीफ करते हुए दावा किया था कि उनके नेतृत्व में ही सन 1982 में भारत के रक्षा मंत्रालय में सेंध लगी थी जिसके कारण फ़्रांस अपने मिराज विमान भारत को बेचने में कामयाब रहा था.
राष्ट्रपति दस्तर में हुई आधी रात गिरफ्तारी
टीम ने कूमार और गोपालन को अपनी जगह बैठे रहने के लिए कहा और पूरे दफ़्तर की तलाशी लेने लगे. इंटेलिजेंस ब्यूरो इस बात को देखकर हैरान थे कि राजीव गांधी की पहली कैबिनेट बैठक के नोट्स उस टेबल में मौजूद थे. उन्होंने गोपालन के ब्रीफकेस को चेक करने पर देखा कि उसमें प्रधानमंत्री के ऑफिस से जुड़े तीन बेहद महत्त्वपूर्ण कागज़ात थे. तलाशी अगले दिन सुबह होने तक चलती रही. जिस रात ये तलाशी चल रही थी ठीक उसी समय इस मामले में जुड़े बाकी लोगों पर भी दबिश दी जा रही थी. ताबड़तोड़ लोग गिरफ्तार हो रहे थे.
अफसरों की टीम ने डिफेन्स प्रोडक्शन डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी के पर्सनल असिस्टेंट जगदीश चन्द्र अरोड़ा को नींद से उठाकर गिरफ्तार किया. इंटलीजेंस ब्यूरो के अफसरों ने पीसी एलेक्जेंडर के निजी सचिव कश्मीरी टीएन खेर को भी गिरफ्तार किया. गिरफ़्तार किए जाने वाले एक और व्यक्ति थे राष्ट्रपति के प्रेस सलाहकार तरलोचन सिंह के वरिष्ठ निजी सहायक एस शंकरण जोकि पिछले बीस से अधिक वर्षों से राष्ट्रपति के स्टाफ़ में थे. सुबह होते-होते पीए केके मल्होत्रा और यहाँ तक कि पीएमओ के एक चपरासी को भी गिरफ़्तार कर लिया गया. नारायण और गोपालन को पूछताछ के लिए लाल किले ले जाया गया. 17 जनवरी की रात को ही तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन पर आठ लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर लिखवाई गई.
खबर से मचा हड़कंप, इस्तीफे का दौर शुरू
बड़े गुप्त तरीके से चले इस जासूसी पर्दाफाश को मीडिया से बचाकर नहीं रखा जा सका. ‘द हिंदू’ के जीके रेड्डी को इसकी ख़बर लग गई थी. 18 जनवरी, 1985 को राजीव गांधी के प्रधान सचिव पीसी एलेक्ज़ेंडर दोपहर तीन बजे प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचते है. उस समय उनके तीन वरिष्ठ सहयोगी नरसिम्हा राव, वीपी सिंह और एसबी चव्हाण उनके पास बैठे हुए थे. पीसी एलेक्ज़ेंडर, राजीव गाँधी से कहते है कि मैं आपसे अकेले में मिलना चाहता हूँ. जैसे ही वो लोग गए वैसे ही उन्होंने प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा सौंप दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि “मेरे निजी सचिव और तीन निजी सहयोगियों को जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है इसीलिए मै इस मामले की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे रहा हूं.
अब देश में हंगामा मच चुका था. फ्रेंच एम्बेसी के मिलिट्री अटैशे लेफ्टिनेंट कर्नल एलेन बॉली को देश से निकल जाने के लिए कहा गया. एलेन बॉली को उनके परिवार सहित एयरपोर्ट छोड़ा गया, जहां से एयर फ्रांस की एक फ्लाईट उन्हें पेरिस ले गई. फ्रांस के राजदूत Serge Boidevaix को भारत के कहने पर दिल्ली से वापस बुला लिया गया. चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड और पूर्वी जर्मनी के दिल्ली दूतावास से राजनयिकों को भी निष्कासित कर दिया गया. पोलिश इंटेलिजेंस सर्विस SB के भारतीय प्रतिनिधि जान हाबेरका और उनके साथी ओटो विकर को भी चले जाने का फ़रमान सुनाया गया.
Quis Custodiet Ipsos Custodes ?
रोमन कवि जुवेनल का कहा एक मशहूर वाक्य रोमन में फेमस है जिसका मतलब हुआ, पहरेदार की रखवाली कौन करेगा? देश रक्षक ही भक्षक बन चुके थे. फरवरी 1986 में इस मामले में चल रही सुनवाई में कूमर नारायण ने अपना अपराध स्वीकार किया. ये भी बताया कि उसने अपनी जासूसी से लगभग एक मिलियन डॉलर कमाए थे. लेकिन उन पैसों का क्या किया, इसका कोई हिसाब नहीं दिया गया. 2002 में कोर्ट का फैसला आया और 13 लोग दोषी करार दिए गए. लेकिन फ़ैसला आने से दो साल पहले 20 मार्च, 2000 को कूमर नारायण का निधन हो गया.