राजनीति और गैंगेस्टर के अलावा इन विशेष कारणों से भी मशहूर है यूपी का गोरखपुर जिला
उत्तर प्रदेश का गोरखपुर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र है। जहां बौद्ध, हिंदू, मुस्लिम, जैन और सिख संतो का साधनास्थल है। गोरखपुर का नाम सर्वमान संत गोरखनाथ के नाम पर रखा गया है।
उत्तर प्रदेश का गोरखपुर (Gorakhpur Tourism) एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र है। जहां बौद्ध, हिंदू, मुस्लिम, जैन और सिख संतो का साधनास्थल है। गोरखपुर का नाम सर्वमान संत गोरखनाथ के नाम पर रखा गया है। गोरखपुर में ही महान संत योगानंद का जन्म हुआ था। यहां की हर चीज का एक अपना ही अलग महत्व है।
गोरखपुर में ऐसी कई जगह हैं, जहां आपको जरुर जाना चाहिए। इसमें मुख्य रुप से बौद्धओं के घर, इमामबाड़ा, हिंदू धार्मिक ग्रंथों का प्रमुख प्रसारण संस्थान गीता प्रेस, गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन और भी कई जगह शामिल हैं। लेकिन गोरखपुर की कुछ ऐसी खास जगह जो गोरखपुर की शान को बढ़ाती हैं। उनके बारे में आप यहां जरुर जानें-
अमर शहीद बंधु सिंह मेमोरियल-
शहीद बंधू सिंह का देश की आजादी में एक अहम योगदान रहा है। उन्होंने गोरखपुर (Gorakhpur Tourism) के आसपास के क्षेत्रों के युवाओं के दिल में स्वतंत्रा की चिंगारी जलाई थी। अंग्रेजों ने शहीद बंधु सिंह को 25 की उम्र में 7 बार फांसी से लटकाने की कोशिश की थी लेकिन हर बार फांसी का फंदा टूट जाता था। आठवीं बार वो खुद मां जगतजननी देवी का ध्यान कर फांसी के फंदे पर झूल गए। इसके बाद इस देवी का नाम माता तरकुलहा कर दिया गया। यंहा भक्तों द्वारा सच्चे मन से मांगी हर एक मुराद पूरी होती है।
Gorakhpur में गीता वाटिका मंदिर-
गोरखपुर का यह मंदिर राधा कृष्ण भक्तों का प्रमुख केंद्र है। यहां की खास बात हरि नाम संकीर्तन है। जो कि पिछले 52 वर्षों से अनवरत जारी है। गीता वाटिका में साल भर में लगभग आधा दर्जन से अधिक उत्सव मनाए जाते हैं। जिसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। यहां मुख्य रुप से जन्माष्टमी और राधाष्टमी धार्मिक पर्व मनाया जाता है।
गोरखपुर गीता प्रेस-
गोरखपुर गीता प्रेस (Gorakhpur Geeta Press) भारत की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी हिंदू धर्म पर किताबें छापने वाली प्रेस है। जिसकी स्थापना 1923 में जया दयाल गोयनका और घनश्याम दास जलन द्वारा की गई थी। इसी के साथ यह भारत की सबसे सस्ती प्रेस भी है। गीता प्रेस ने 1927 में बुक छापना शुरू किया था। जिसकी कुल कॉपी तब के समय में 1,600 थी। जो कि अभी के समय में 2 लाख 5 हजार तक पहुंच गई है।
गोरखनाथ मंदिर-
गोरखनाथ मंदिर में जलाई गई धूनी की भभूत ही यहां पर आए हुए सभी भक्तों का प्रमुख प्रसाद है। गुरु गोरखनाथ जंगल में धूनी जलाया करते थे जो आज भी अनवरत वही पे जल रहा है। उन्हें जलाने के लिए वन विभाग की तरफ से लकड़ी दी जाती है। इनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ किसी के घर न ही भोजन करते थे और न ही किसी के घर रुकते थे। उनके पास त्रिशूल, चमचा, झोला, खप्पर होता था। गोरखनाथ जिस जंगल में रहा करते थे आज वही पर एक विशाल मंदिर गोरखनाथ मंदिर के नाम से है।