Shammi Kapoor: भारतीय सिनेमा के पहले डांसिंग स्टार के बारे में सब कुछ यहां जानें
लेखिका – स्वाति कुमारी
‘तुमसा नहीं देखा’ (Tumsa Nahi Dekha) वैसे तो ये शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) की एक फिल्म का नाम हैं जो सन् 1957 में आई थी। लेकिन वक़्त गुजरने के साथ-साथ शम्मी साहब के नाम से ऐसे जुड़ गई जैसे फिल्म का टाइटल इस बेहतरीन अदाकार के सम्पूर्ण जीवन का सार हो। 21 अक्टूबर की तारीख पर हम याद कर रहे हैं, हिन्दी सिनेमा के बेहतरीन कलाकारों में से एक, शम्मी कपूर जी (Shammi Kapoor) को… क्योंकि 21 अक्टूबर को ही उनका जन्मदिन भी होता है। “शमशेर राज कपूर”, जोकि “एल्विस प्रेसले” के नाम से भी मशहूर है, शम्मी कपूर जी का जन्म पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था।
ये अपने पिता, पृत्थवीराज कपूर और माता, रामसर्णी मेहता कपूर, के दूसरे नंबर के पुत्र थे। इनके बड़े भाई राज कपूर (Raj Kapoor) और छोटे भाई शशि कपूर (Shashi Kapoor) भी रंगमंच से जुड़े रहें। इनके पिता उस वक़्त न्यू ऐरा थियेटर के साथ काम किया करते थे। इसलिए शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) का शुरुआती दौर कलकत्ता में गुज़रा। उसके बाद इनका पूरा परिवार मुंबई में आकर बस गया और मुंबई में ही शम्मी कपूर की शिक्षा पूरी हुई।
पिता और भाई राज कपूर के रंगमंच से जुड़े रहने के कारण ही शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) का झुकाव बचपन से ही थियेटर की तरफ था और वक़्त के साथ साथ उनके अंदर का कलाकार जब बाहर निकल के आया तो लोगों के मुंह से बस ये ही निकला कि वक़ाई – “तुमसा नहीं देखा”
अपने दौर में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले एक्टर-
चुलबुले से और अपनी ही धुन में खोए रहने वाले शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) का अंदाज़ अपने दौर के साथी कलाकारों से बिल्कुल अलग था। एक तरफ़ जहां समाज को आइना दिखाने वाली फिल्मों का निर्माण हो रहा था, तो दूसरी तरफ़ शम्मी कपूर पहले डांसिंग स्टार होने के साथ ही समाजिक फिल्मों के निर्माण के साथ-साथ उछल कूद, रोमांस और ड्रामा का पाठ भी पढ़ा रहे थे।
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1950 से 1970 तक का वो दौर-
वर्ष 1953 में अई फ़िल्म “जीवन ज्योति” से शम्मी कपूर ने फिल्मी दुनिया में कदम रखा, शुरूआती दौर की फिल्मों से उन्हें कुछ खास पहचान नहीं मिली। एक के बाद एक निराशा हाथ लग रही थी, लेकिन शम्मी कपूर ने कभी हार नहीं मानी और लगातार मिलती निराशाओं के बाद भी, वो अपनी प्रत्येक फ़िल्मों में अपना सौ प्रतिशत देते रहें।
फिर एक दिन आया जिसके बाद से तो मानों शम्मी कपूर की दुनिया ही बदल गई। फ़िल्म “तुमसा नहीं देखा” (1957) बॉक्स ऑफिस पर सुपर डूपर हिट साबित हुई। ऐसा कहा जाता है कि इस फ़िल्म के लिए शम्मी कपूर अपना एक नया रूप लेकर आएं (पहले वो दाढ़ी रक्खा करते थे,बाद ने उन्होंने अपने चेहरे को क्लीन शेव कर लिया, बालों का अंदाज़ पुराने अंदाज से बिल्कुल अलग था, और कपड़े पहले से ज्यादा स्टाइलिश हो चुके थे) भारतीय सिनेमा को चाहने वाले लोगों को बहुत पसंद आया।
फिल्मोंग्राफी-
(1953) :- जीवन ज्योति, रेल का डिब्बा , ठोकर, लैला मजनू , गुल सनोबार, खोज
(1954) :- शमा परवाना, मेहबूबा , एहसान, चोर बाज़ार
(1955) :- तांगेवाली, नक़ाब, मिस कोकाकोला , डाकूं
(1956) :- सिपासालार , रंगीन रातें, मेमसहब, हम सब चोर हैं
(1957) :- तुमसा नहीं देखा , कॉफी हाउस, महारानी, मिर्ज़ा साहिबान
(1958) :- मुजरिम, दिल देके देखो
(1959) :- उजाला, रात के रहीं, मोहर, चार दिन चार रातें
(1960) :- बसंत, कॉलेज गर्ल, सिंगापुर
(1961) :- बॉयफ्रेंड , जंगली
(1962) :- दिल तेरा दीवाना, प्रोफेसर , चाइना टाउन, वाल्लह क्या बात है
(1963) :- ब्लफ मास्टर, शहीद भगतसिंह , प्यार किया तो डरना क्या
(1964 ) :- राजकुमार, कश्मीर की कली
(1965) :- जानवर
(1966) :-तीसली मंजिल, प्रीत न जाने, बदतमीज
(1967) :- एन इवनिंग इन पेरिस, लाड़ साहब
(1968) :- ब्रह्मचारी
(1969) :- प्रिंस,तुमसे अच्छा कौन है, सच्चाई
(1970) :- पगला कहीं का
कभी लीड, तो कभी सपोर्टिंग एक्टर (1971 से 2011)
(1971) :- अंदाज़, जवान मोहब्बत, जाने अनजाने, प्रीतम
(1974) :- ज़मीर, मनोरंजन, छोटे सरकार
(1975): – सलांखे
(1976) :- बंडल बाज
(1977) :- परवरिश
(1978) :-शालीमार
(1979) :- मीरा
(1981) :- प्रोफ़ेसर प्यारेलाल
(1982) :- प्रेमरोग , विधाता , देशप्रेम
(1983) :- हीरो, बेताब
(1984) :- सोनी महिवाल
(1986) :- अल्लाह रक्खा
(1987) :- हुकूमत
(1991):- अजूबा
( 1992):- तहलका, आमरण, चमत्कार, तहलका
(1993) :- आजा मेरी जान
(1994) :- सखाम सुखकर्म
(1996):- और प्यार हो गया, प्रेम ग्रंथ
(1998) :- कर्म
(1999) :- जानेंमन समझा करों, ईस्ट एज ईस्ट
(2002) :- ये हैं जलवा,वह! तेरा क्या कहना
(2005):- भोला इन बॉलीवुड
(2006) :- सैंडविच
(2011) :- रॉकस्टार
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फिल्मों की इस श्रखंला से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) रंगमंच से कितनी मोहाब्बत किया करते थे। पहले साल में उन्होंने 6 फिल्मों में काम किया उसके बाद वे साल में ज्यादा से ज्यादा चार फिल्में किया करते थे। कुछ साल ऐसे भी गुज़रे जहाँ उन्होंने एक ही फ़िल्म की और कुछ साल पारिवारिक कारणों से रंगमंच से दूर रहें, लेकिन फिल्मों को अलविदा उन्होंने आखिरी साँस तक नही कहा।
मोहम्मद रफ़ी और शम्मी कपूर-
शम्मी कपूर अक्सर कहा करते थे कि रफ़ी साहब ही उनकी असली आवाज़ हैं, उनकी पहचान हैं अगर वो न होते तो शायद वो अधूरे होते उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था “मोहम्मद रफ़ी के बिना शम्मी कुछ भी नहीं था”। वो कहते है न एक अच्छा कलाकार बनने से पहले एक अच्छा इंसान भी होना ज़रूरी है, शायद यही कारण है कि शम्मी जी अपने दौर के बेहतरीन कलाकारों में से एक थे। उनकी रंगो में खून नहीं अभिनय दौड़ता था। अगर शम्मी कपूर जी के जीवन से अभिनय शब्द मिटा दिया जाएं तो वें सिर्फ़ अपने माता पिता के मात्र शम्मी ही रह जाएंगे।
मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ और शम्मी कपूर के अभिनय से सजाएं गए कुछ बेहतरीन गीत –
ये चाँद सा रौशन चेहरा… रात के हमसफ़र… बार बार देखों… दीवाना हुआ बादल… बदन पे सितारें… याहुँ…चाहें कोई मुझे जंगली कहें… दिन सारा गुज़रा… सुकू सुकू…. करूँ मैं क्या सुकू… इशारों इशारों में…. एहसान तेरा होगा मुझ पर… शुभह नल्लाह हसीन चेहरा… किसी न किसी से… अकेले अकेले… होगा तुमसा… मेरा दिल है तेरा…. आसमान से आया हैं… दीवाने का नाम… ये रंग न छूटेगा… नज़र में बिजली… हैं दुनिया उसी की… देखों जी एक…. छम छम लो सुनो… वल्लाह क्या बात है…. यम्मा यम्मा… हमसे न पूछो… मेरी जान बल्ले… झूमता मौसम…. खुली पलक में… दुनिया वालों से दूर… ए गुल बदन… ये वें बेहतरीन नगमें हैं जिन्होंने आज भी शम्मी साहब और रफ़ी साहब को हमारे दिल और दिमाग़ में जिंदा रक्खा है।
शम्मी का ज़िक्र हो और गीता बाली को अनदेखा कर दिया जाएं…ऐसा तो हो ही नहीं सकता….
फिल्म थी “रंगीन रातें”, ये वो वक़्त था जब गीता बाली और शम्मी साहब एक साथ एक ही फिल्म में काम कर रहे थे… किस्सा कुछ ऐसा है कि शम्मी साहब को पहाड़ी जगह और उनके कल्चरल से काफ़ी लगाव था। अतः वे शूटिंग के बाद अकसर पहाड़ी गानें सुना करते थे… उन दिनों रंगीन रातें (1955) की शूटिंग के दौरान उनकी मुलाक़ात गीता बाली जी से हुई, तो उन्हें पता चला गीता बाली जी भी बिल्कुल उनकी ही तरह हैं उन्हें भी पहाड़ी गानों का बहुत शौक है… फ़िर क्या है, पहाड़ों से नीचे आते ही शम्मी जी ने गीता जी के सामने सीधा शादी का प्रपोजल रक्खा परन्तु गीता बाली जी ने शादी करने से इनकार कर दिया….लेकिन शम्मी कपूर जी भी कम नहीं थे… वें जब भी मौका पाते गीता बाली जी से उनका एक ही सवाल रहता – शादी करोगी मुझसे?
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फ़िर एक दिन गीता बाली जी मान गई, आधी रात का वक़्त था और अचानक गीताबाली जी ने शम्मी जी के सवाल पर हामी भर दी, शम्मी जी ने घर में बात करने के लिए बोला लेकिन गीता जी की भी ज़िद्द थी, कि उन्हें पहले शादी करनी है, आज और इसी वक़्त, इसपर शम्मी जी एक मंदिर में गए और पंडित जी को जगा कर बोले कि हम दोनों शादी करना चाहते हैं, पंडित जी बोले अभी तो भगवान जी सो गए है आप सुबह आना हम आपकी शादी करवा देंगे, उस रात दोनों ने वहीं इंतज़ार किया और सुबह होते ही दोनों शादी के बंधन में हमेशा के लिए बंध गए।
शम्मी कपूर और गीताबाली का परिवार-
गीता बाली से शम्मी कपूर के दो बच्चे हुए, ‘आदित्य राज कपूर’ और ‘कंचन कपूर’… कंचन कपूर एक फिल्म प्रोड्यूसर हैं जबकि आदित्य राज कपूर एक फिल्म एक्टर हैं। दस साल के बेहतरीन सफ़र के बाद गीता बाली, शम्मी कपूर को इस दुनिया में दो बच्चों के साथ अकेला छोड़ गई,बच्चे बहुत छोटे थे इसलिए घर वालों ने दूसरी शादी करने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया और आखिर में शम्मी कपूर की शादी हुई, ‘नीला देवी’ जी के साथ, गीताबाली की मौत के बाद बहुत टूट गए थे शम्मी कपूर और कुछ समय के लिए उन्होंने रंगमंच से ख़ुद को बहुत दूर रक्खा।
सम्मान एवं पुरस्कार-
*फ़िल्म फेयर अवॉर्ड फॉर बेस्ट एक्टर, फिल्म “ब्रह्मचारी”(1969)
*फ़िल्म फेयर अवॉर्ड फॉर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर, फ़िल्म “विधाता” (1983)
*फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड ( 1955)
*ज़ी सीने अवॉर्ड फॉर लाइफ टाइम अचीवमेंट (1999)
*बॉलीवुड मूवी अवॉर्ड फॉर लाइफ टाइम अचीवमेंट (2005)
*आईफा अवार्ड फॉर आउटस्टैंडिंग कंट्रीब्यूशन टू इंडियन सिनेमा मेल (2002)
डायरेक्शन की दुनिया में शम्मी कपूर-
ऐसा बहुत कम ही लोग जानते है कि शम्मी कपूर सिर्फ़ एक्टर ही नहीं थे, उन्होंने बतौर डायरेक्टर भी बहुत सी फिल्मों का निर्देशन किया जैसे बंडल बाज (1976) और मनोरंजन (1974)। यें ऐसी दो फिल्में हैं जिसमें उन्होंने सिर्फ अभिनय ही नहीं बल्कि उनका निर्देशन भी किया।
आख़िरी फिल्म रॉकस्टार-
शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) ने अपने फिल्मी कैरियर में भाइयों के साथ तो कई बार स्क्रीन सांझा किया परंतु दुनिया को अलविदा कहने से पहले उन्होंने अपने पोते (शम्मी कपूर के भाई राज कपूर के पुत्र ऋषिकपूर के बेटे और शम्मी कपूर के सौपुत्र) रणवीर कपूर, जो की आजकल हिंदी सिनेमा का बहुचर्चित चेहरा हैं, उनके साथ फ़िल्म रॉकस्टार में नज़र आएं और 14 अगस्त 2011, दुनिया को अलविदा कह गए।
किसी ने सच ही कहा है – “कला और कलाकार का कभी अंत नहीं होता, वो हमेशा हमारे बीच ही रहता है। ” शम्मी कपूर आज हमारे साथ नहीं है लेकिन वो फिर भी है लोगों के दिलों में, लोगों के घरों में, लोगों की ज़ुबान में, लोगों के शब्दों में….
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