कार्तिक आर्यन की फिल्म Dhamaka के ये Best Dialogues सोचने पर मजबूर कर देंगे
फिल्म में कार्तिक आर्यन, म्रुनल ठाकुर (Mrunal Thakur), अमृता सुभाष (Amruta Subhash) की एक्टिंग और डायलॉग की खूब तारीफ की जा रही है। धमाका फिल्म के कई डायलॉग हैं (Dhamaka Film Best Dialogues) जोकि किसी को भी सोचने पर मजबूर कर दें।
कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan) की लेटेस्ट फिल्म धमाका (Film Dhamaka) नेटफ्लिक्स पर धमाल मचा रही है। धमाका को क्रिटिक्स ने भी पांच में से अच्छे स्टार दिए हैं। फिल्म में कार्तिक आर्यन, म्रुनल ठाकुर (Mrunal Thakur), अमृता सुभाष (Amruta Subhash) की एक्टिंग और डायलॉग की खूब तारीफ की जा रही है। धमाका फिल्म के कई डायलॉग हैं (Dhamaka Film Best Dialogues) जोकि किसी को भी सोचने पर मजबूर कर दें। ऐसे ही कुछ चुनिंदा डायलॉग जनता कनेक्ट की टीम आपके लिए लेकर आई है। जिसे पढ़कर आपको फिल्म देखने का मन जरुर ही करेगा और अगर फिल्म देख चुके हैं तो एक बार फिर से यादें आपके सामने होंगी।
धमाका फिल्म से पांच बेहतरीन डायलॉग-
पहला- “जो भी आप न्यूज देखते हैं, सब सच नहीं होता। क्योंकि सच के लिए टाइम लगता है और ऑडियंस के पास टाइम नहीं है।” यहां पर कार्तिक आर्यन जोकि फिल्म में अर्जुन पाठक की भूमिका में हैं वो इस डायलॉग से मीडिया इंडस्ट्री की एक सच्चाई को बया करने की कोशिश करते हैं।
दुसरा- “सबसे इम्पोर्टेन्ट बात, पहले चैनल फिर जर्नलिज्म।” धमाका फिल्म का यह डायलॉग कही न कही जर्नलिज्म जिसको लेकर बड़े-बड़े चैनल बनाए गए हैं। उनकी असल सच्चाई अब क्या हो गई है उसको भी दर्शाने की कोशिश करता है।
तीसरा- “एंकर क्या होता है? एक्टर होता है। एक्टर को चाहिए ऑडियंस, ऑडियंस को चाहिए ड्रामा।” इस डायलॉग के माध्यम से बड़े-बड़े टीवी एंकर जोकि अपने आप को बड़ा पत्रकार बताते फिरते हैं उन्हे एक एक्टर बना दिया गया है जोकि ऑडियंस के लिए ड्रामा कर रहा है।
चौथा- “चैनल को रेटिंग चाहिए, सच नहीं!” इस डायलॉग ने टीआरपी के पीछे भागते टीवी चैनलों का सच उजागर करने का काम किया है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे एक चैनल के लिए उसकी रेटिंग ज्यादा महत्वपूर्ण होती है जितना की सच दिखाना भी नहीं होता।
पांंचवा- “इस देश के लिए हमने कुत्ते की तरह काम किया। लेकिन इस देश के लोगो ने हमे कुत्ता ही समझ लिया।”
कार्तिक आर्यन की धमाका फिल्म के यह पांच बेस्ट डायलॉग (Dhamaka Film Best Dialogues) हैं, जिन्हे पढ़ने के बाद आप भी बड़े-बड़े मीडिया चैनलों के बारे में एक बार जरुर सोचेंगे। कितना सच, कितना झूठ और कितनी यहां-वहां की बातें, जिनका वास्तव में आपसे कोई लेना-देना नहीं है सिवाय आपको भटकाने से।