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मैकेनिकल इंजीनियरिंग से भारतीय छात्र क्यों दूर भाग रहे हैं

मैकेनिकल इंजीनियरिंग ( Mechanical Engineering ) के छात्र फिल्मों से लेकर स्टैंड-अप कमेडी तक मजाक का पात्र बन ही जाते हैं। इनका महज नाम लेने से बैठी जनता हंसने लगती है। लेकिन यह उन कारणों में से एक नहीं है, जिसकी वजह से छात्र इस कोर्स से दूर भाग रहे हैं।

मैकेनिकल इंजीनियरिंग ( Mechanical Engineering ) के छात्र फिल्मों से लेकर स्टैंड-अप कमेडी तक मजाक का पात्र बन ही जाते हैं। इनका महज नाम लेने से बैठी जनता हंसने लगती है। लेकिन यह उन कारणों में से एक नहीं है, जिसकी वजह से छात्र इस कोर्स से दूर भाग रहे हैं। बल्की कारण ऐसे हैं जिसपर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ( AICTE ) को सोच-विचार कर उचित कदम उठाने की जरुरत है। क्योंकि ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले समय में मैकेनिकल इंजीनियरिंग का भविष्य भारत में विलुप्त होने के कागार पर होगा।

इस वजह से मैकेनिकल इंजीनियरिंग से दूर भाग रहे हैं छात्र –

1. मैकेनिकल इंजीनियरिंग के नाम पर छात्रों को बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में जो पढ़ाया जा रहा है वह शिक्षा के नाम पर काफी पुराना पाठ्यक्रम है। इसकी शिकायत मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहे या फिर कर चुके छात्र खुद करते हैं। जबकि इसके विपरीत अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ( AICTE ) के चेयरमैन, अनिल सहस्त्रबुद्धे का कहना है कि पाठ्यक्रम एक-दम दुरस्त और अपडेटेड हैं।

2. बेराजगारी दर उन छात्रों में ज्यादा है जोकि मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री को लेकर धूम रहे हैं। मैकिनिकल इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों से ज्यादा कम्प्यूटर साइंस और आईटी पढ़ने वाले छात्रों के लिए ज्यादा अवसर बाजार में उपलब्ध हैं। कम रोजगार होना भी मैकेनिकल इंजीनियरिंग को न कहने के पीछे छात्रों का एक कारण है।

3. भारत में पढ़ाई जाने वाली मैकेनिकल इंजीनियरिंग का महत्व दूसरे देशों में कम है। इन देशों में अमेरिका भी एक देश है। जहां भारतीय मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिग्री को लेकर जाने वाले छात्र अक्सर यह शिकायत करते हैं कि उन्हे उनकी डिग्री की वजह से वह असवर नहीं मिल पाता जोकि अन्य देश के युवाओं को मिल जाता है। इस पर भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ( AICTE ) के चेयरमैन, अनिल सहस्त्रबुद्धे का कहना है कि ऐसे छात्रों को विदेश जाने की जरूरत नहीं है। ऐसे छात्रों को देश में ही मैकेनिकल से जुड़े स्टार्टअप करना चाहिए।

4. मैकेनिकल में स्टार्टअप करना किसी बच्चे का खेल नहीं है। सरकार जितनी आसानी से दैनिक अखबारों में स्टार्टअप लोन के लिए प्रचार देती है, उस प्रचार जितना पैसा भी एक आम छात्र को नहीं मिल पाता है। बैंको के चक्कर लगा-लगाकर छात्र परेशान हो जाता है। अगर सच में भारत जैसे देश में स्टार्ट-अप करना इतना आसान होता तो आज कोई भी बेरोजगारी के नाम पर रो नहीं रहा होता। और सभी मैकेनिकल कंपनियां ‘हमें कर्मचारी दे दो’ का बोर्ड लगाकर सड़क पर होतीं।

AICTE ने “AICTE Fit India” कार्यक्रम किया लॉन्च

4 जुलाई 2022 की तारीख पर सम्मानित अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के ‘आई़डिया एक्सचेंज’ पृष्ठ पर अनिल सहस्त्रबुद्धे, चेयरमैन, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ( AICTE ) का साक्षात्कार है। जहां उन्होने कई सवालों का ऐसा जवाब दिया है जिसे सुनने के बाद एक छात्र जरूर ही उनके खिलाफ बगावत कर दे। सवाल के बदले गुमराही से भरे उनके जवाब वाकई में यह बताने के लिए काफी हैं कि हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का क्या हाल है।

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