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कोविड के बाद ट्रैक पर लौटती दुनिया : भारत से क्या सीख सकता है विश्व?

बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के लिए गर्व की बात है कि वह अपने शुरुआती दिनों से ही संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ अपने सभी प्रयासों को संरेखित करते हुए, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। वर्ष 2002 में संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर भारत पहला देश बना, जहां हमने एक छोटी टीम की स्थापना की।

बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के लिए गर्व की बात है कि वह अपने शुरुआती दिनों से ही संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ अपने सभी प्रयासों को संरेखित करते हुए, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। वर्ष 2002 में संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर भारत पहला देश बना, जहां हमने एक छोटी टीम की स्थापना की। कुछ साल बाद, हमने दिल्ली में बजाप्ता अपना दफ्तर खोला और प्राथमिकता वाले मुद्दों को हल करने व तेजी से आगे बढ़ने के लिए अपने काम का विस्तार किया। मां और नवजात की सेहत, संक्रामक रोग, कृषि विकास और वित्तीय सेवाएं, ये कुछ ऐसे विषय-क्षेत्र हैं जिन पर हम ध्यान केंद्रित करते हैं। इन क्षेत्रों में विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार में भौगोलिक प्राथमिकता के आधार पर ध्यान दिया गया।

इन वर्षों में हमने भारत के साथ अपने जुड़ाव को और गहरा किया है। एक फाउंडेशन के रूप में हमें उन भारतीय भागीदारों के साथ मिलकर काम करने का अवसर मिला है, जो बेहतर स्वास्थ्य और विकास का मार्ग प्रशस्त करने में अग्रणी हैं। हमें एचआईवी की रोकथाम के लिए आवाहन कार्यक्रम, भारत के पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम, मिशन इंद्रधनुष, स्वच्छ भारत मिशन और पोषण अभियान पर भारत सरकार के साथ मिलकर काम करने पर गर्व है। हमने देश के टीका अनुसंधान में भी निवेश किया है, जिसमें भारत में बने रोटावायरस, निमोनिया और खसरे के टीके के विकास का समर्थन करना शामिल है।

हम अहम मुद्दों पर बिहार और यूपी के राज्य सरकारों में मजबूत भारतीय भागीदारों के साथ मिलकर काम करने के लिए आभारी हैं। इसलिए, अपनी पिछली यात्रा के दो साल से अधिक समय बाद जून में भारत लौटकर सरकारी अधिकारियों से लेकर पेशेवर स्वास्थ्यकर्मियों, अकादमिक शोधकर्ताओं और डिजिटल नवोन्मेषकों से मुलाकात करना मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर सार्थक पहल रहा।

मैं अपनी यात्रा को वैश्विक स्वास्थ्य और विकास के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानने के किसी आग्रह पर जोर नहीं देना चाहता। 21वीं सदी के पहले दो दशकों में दुनिया ने समानता की दिशा में अभूतपूर्व प्रगति की है। इस दौरान बच्चों की मौत की संख्या आधी हो गई और वैश्विक गरीबी दर में तीन-चौथाई की गिरावट आई। लेकिन, कोविड-19 से हुए नुकसान, जलवायु परिवर्तन, आकाल जैसी सूरत और अन्य खतरों के कारण यह प्रगति खतरे में है।

अलबत्ता, वैश्विक गौरबराबरी के असमान दौर में भारत सेहत और विकास के क्षेत्र में अहम निवेश कर रहा है, जिससे दुनिया भर के लाखों लोगों को स्वस्थ और बेहतर जीवन जीने में मदद मिल रही है। बेशक, मैं इससे हैरान नहीं हूं। भारत ने बार-बार दिखाया है कि वह नई और मौजूदा चुनौतियों का नया समाधान खोजने के लिए नवाचार का बेहतर उपयोग कर सकता है। अन्य देशों की तरह, कोविड महामारी ने भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को भी प्रभावित किया। फिर भी, स्वास्थ्य प्रणाली के लचीलेपन ने भारत को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को फिर से शुरू करने में सक्षम बनाया, जो प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करने में पिछले निवेश का एक प्रमाण है। महामारी से मिले सबक ने भारत को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाने के साथ मजबूत करने और महामारी की तैयारी में महत्वपूर्ण सुधार के लिए अतिरिक्त निवेश के माध्यम से एक महत्वाकांक्षी पंचवर्षीय कार्यक्रम तैयार करने में सक्षम बनाया है। आज भारत जटिल से जटिल समस्याओं को भी दृढ़ संकल्प के साथ उससे निपटने, उसका समाधान करने और उसके लिए आगे की तैयारी मजबूत करने के लिहाज से देखता है।

भारत के कोविड -19 टीका अभियान की गति और दक्षता पर गौर करें तो पता चलता है कि कैसे उसने इस महामारी से लड़ाई में कदम बढ़ाए और कामयाबी पाई। उसने टीके के लॉन्च के महज 18 महीनों के भीतर 200 करोड़ से अधिक टीकाकरण की संख्या को पार कर ली। यह महज संयोग नहीं कि दुनिया के सबसे बड़े टीकों के उत्पादक भारत ने यह कामयाबी हासिल की है।

भारत आज फॉर्मेसी के क्षेत्र में काफी आगे है। वह आज जीवनरक्षक नवाचारों के लिए एक अहम इनक्यूबेटर, अत्याधुनिक अनुसंधान और विकास का केंद्र है। भारत के कोविड टीकाकरण अभियान की रीढ़ कोविन (CoWin) को ही लें, तो पता चलता है कि भारत ने किस तरह से महामारी से निपटने में तकनीक का बेहतर इस्तेमाल किया। उसने साबित किया कि देश आज डिजिटली इतना दक्ष हो चुका है कि किसी महामारी से लड़ने, उसकी निगरानी करने, उसके निदान और लोगों तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने में अग्रणी साबित होगा। भारत के अग्रणी डिजिटल उपकरणों ने दुनिया भर के अन्य देशों के लिए एक प्रभावशाली मॉडल दिया है। हालांकि, कोविड महामारी के विनाशकारी प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता। विशेष रूप से उन लोगों के लिए, जिन्होंने इस दौरान अपने प्रियजनों को खो दिया।

मातृ और शिशु मृत्यु दर के प्रमुख संकेतक भी भारत की एक शक्तिशाली और सकारात्मक कहानी बयां करती हैं। भारत ने 12-23 महीने की उम्र के 76 फीसद से अधिक बच्चों के लिए पूर्ण टीकाकरण कवरेज सुनिश्चित किया है। पिछले पांच वर्षों में अधिक महिलाओं ने अपने बच्चों को घर या लचर व्यवस्था की बजाय बेहतर सुविधाओं में जन्म दिया है। इस तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति साफ दिखती है।

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हम जानते हैं कि बेहतर प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारी और आधुनिक स्वास्थ्य उपकरणों से इसमें और सुधार हो सकता है। मैंने लखनऊ के एक जिला अस्पताल का दौरा किया, जहां स्वास्थ्य प्रणाली में अधिक विशेषज्ञों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार नवीन समाधानों और नीतिगत परिवर्तनों का अनुसरण कर रही है। आज, मेडिकल कॉलेजों और पहली रेफरल इकाइयों के बीच साझेदारी के माध्यम से डॉक्टर सलाह प्राप्त कर रहे हैं। नर्सों को भी सलाह दी जा रही है, और सेवा-पूर्व नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है। बडी-बडी कैंपेन सामान्य डॉक्टरों के साथ विशेषज्ञों के लिए है, जो उन्हें उन कौशल और दक्षताओं के साथ सशक्त बनाते हैं, जिनकी उन्हें प्रसूति संबंधी जटिलताओं का प्रबंधन करने के दौरान आवश्यकता होती है। मैंने इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षित डॉक्टरों से बात की। मैंने उनके बढ़े हुए आत्मविश्वास और पेशेवर गौरव को महसूस किया। इसने उन्हें और सक्षम बनाया है।

मैं स्वास्थ्य सेवा तक आमजन की समान पहुंच बढ़ाने के लिए भारत के अभिनव और लागत प्रभावी (कम लागत में तैयार सिस्टम) प्रयासों से प्रभावित हूं। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन देश के डिजिटल स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करेगा। साथ ही डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर यानी उपभोक्ता के सीधे पहुंच के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र में सहमति-आधारित डेटा और सूचना प्रवाह को सक्षम करेगा।

भारत ने डिजिटल पहचान (आधार) और रीयल-टाइम इंटरऑपरेबल भुगतान प्रणाली (यूपीआई) की दिशा में अग्रणी काम किया है। वास्तव में, UPI को प्रति माह लगभग 6 बिलियन लेनदेन के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाली डिजिटल भुगतान प्रणाली के रूप में जाना जाता है। आज देश में अविश्वसनीय रूप से एक नया डिजिटल उपभोक्ता वर्ग उभरकर आया है जिसमें गरीब और सबसे कमजोर वर्ग के लोगों की संख्या ज्यादा है। तकनीक का फायदा सरकार के साथ आम लोगों को भी हुआ है।

इसने भारत की संघीय सरकार को 750 मिलियन से अधिक लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के भुगतानों को सीधे उनके बैंक खातों में स्थानांतरित करने में सक्षम बनाया है। इसमें 100 मिलियन छोटे किसानों को भुगतान और 200 मिलियन से अधिक महिलाओं को कोविड के दौरान महामारी राहत भुगतान शामिल हैं। इसने उन लोगों के लिए डिजिटल वित्तीय सेवाओं को सक्षम बनाया है, जिनके पास पहले इस तरह की पहुंच नहीं थी। ये नवाचार न केवल भारतीयों की मदद कर रहे हैं, बल्कि वैश्विक पटल पर दुनिया भर के लोगों के लिए एक सार्वजनिक मंच के रूप में उभरने की क्षमता रखते हैं। इससे डिजिटल वित्तीय सेवाओं को और अधिक समावेशी बनाया जा सकेगा।

जैसा कि हम अभी महामारी के विनाशकारी प्रभावों से उबरने के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि, हम अपने सामूहिक दीर्घकालिक लक्ष्यों को नहीं खो सकते हैं। हमें प्रमुख प्रगति संकेतकों पर खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करना चाहिए और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में तेजी से प्रयास करना चाहिए। मैंने अपनी यात्रा की सीख की बात करूं तो मुझे लगता है कि अगर हम पिछली चुनौतियों से सीखते हुए भारत के सबसे बेहतरीन विचारों और नवाचारों को दुनिया भर में लागू करते हैं तो हम फिर से पटरी पर लौट सकते हैं।

(मार्क सुजमैन बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सीईओ हैं।)

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